संसदीय पैनल की ताज़ा रिपोर्ट में यमुना नदी की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली और आसपास के इलाकों में यमुना का जलस्तर और गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक गिर चुकी है। सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद प्रदूषण की स्थिति जस की तस बनी हुई है, जिससे पर्यावरण और लोगों की सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
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Yamuna River Report: प्रदूषण के गिरफ्त में यमुना, संसदीय पैनल की रिपोर्ट ने खोली व्यवस्थाओं की पोल
देश की प्रमुख नदियों में से एक यमुना नदी आज गंभीर प्रदूषण की चपेट में है। हाल ही में संसद की स्थायी समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट ने यमुना की बदहाल स्थिति को लेकर गहरी चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर में यमुना का पानी न तो पीने लायक है और न ही स्नान योग्य।
यह रिपोर्ट एक कड़ा इशारा है कि तमाम सरकारी दावों, हजारों करोड़ के बजट और परियोजनाओं के बावजूद यमुना नदी को स्वच्छ बनाने की दिशा में अब तक ठोस सुधार नहीं हुआ है।
रिपोर्ट में क्या-क्या कहा गया?
संसदीय पैनल की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि:
यमुना में घातक स्तर का रासायनिक प्रदूषण मौजूद है।
हर साल करोड़ों लीटर अशोधित सीवेज और औद्योगिक कचरा यमुना में सीधे बहाया जाता है।
यमुना एक्शन प्लान और नमामि गंगे योजना जैसी परियोजनाएं अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई हैं।
दिल्ली में यमुना का 22 किलोमीटर का खंड 70% प्रदूषण का जिम्मेदार है।
कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) या तो चालू नहीं हैं या उनकी क्षमता अपर्याप्त है।
Yamuna का दिल्ली में हालात सबसे बदतर क्यों?
दिल्ली में यमुना की हालत सबसे खराब मानी जाती है क्योंकि:
यहां पर 22 ड्रेन सीधे यमुना में गिरती हैं, जो मल-मूत्र, औद्योगिक रसायन और प्लास्टिक कचरे से भरी होती हैं।
कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स समय पर अपग्रेड नहीं हो पाए।
आम लोगों और फैक्ट्रियों में अवधारणा की कमी है कि यमुना में कुछ भी फेंकना अपराध है।
पानी का प्रवाह घटता जा रहा है जिससे नदी की स्वयं को शुद्ध करने की क्षमता भी समाप्त हो रही है।
क्या कहती है जनता और पर्यावरणविद्?
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यमुना अब “नदी” नहीं, बल्कि एक “गंदे नाले” में तब्दील हो चुकी है। यह स्थिति प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता और स्वास्थ्य पर व्यापक असर डाल रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि दशकों से सिर्फ योजनाएं बनती हैं, घोषणाएं होती हैं लेकिन ज़मीन पर कुछ खास नहीं बदलता। यमुना किनारे रहने वाले लोगों को दुर्गंध, मच्छरों और त्वचा रोगों का सामना करना पड़ता है।
सरकार की प्रतिक्रिया क्या रही?
पर्यावरण मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय ने पैनल को आश्वासन दिया है कि:
2026 तक दिल्ली की सभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को अपग्रेड किया जाएगा।
रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के जरिए यमुना को फिर से सुंदर और स्वच्छ बनाया जाएगा।
जनजागरूकता अभियान चलाकर लोगों को नदी के महत्व और साफ-सफाई के लिए प्रेरित किया जाएगा।
हालांकि, संसदीय पैनल ने इन वादों को “पुराने और दोहराए गए” करार दिया और कहा कि “अब वक्त है कार्रवाई का, न कि आश्वासनों का।”
क्या हो सकते हैं समाधान?
सख्त निगरानी और जुर्माना: नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जाए।
जन भागीदारी: यमुना स्वच्छता अभियान में स्थानीय नागरिकों, NGOs और युवाओं को जोड़ा जाए।
इनोवेटिव टेक्नोलॉजी: आधुनिक वॉटर ट्रीटमेंट तकनीक और AI बेस्ड निगरानी को लागू किया जाए।
नदी पुनर्जीवन योजना: यमुना में जलप्रवाह बनाए रखने के लिए नहरों और जलधाराओं को जोड़ा जाए।
निष्कर्ष: क्या यमुना फिर से बहेगी स्वच्छ जल के साथ?
यमुना की स्थिति किसी एक सरकार या संगठन की विफलता नहीं, बल्कि सामूहिक असफलता का परिणाम है। संसदीय पैनल की रिपोर्ट एक चेतावनी है कि अगर अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य की पीढ़ियां एक मृत नदी के इतिहास को पढ़ेंगी।
अब समय है कि सभी स्तरों पर जवाबदेही, कार्यशीलता, और जन सहयोग के साथ यमुना को उसका जीवनदान दिया जाए।