सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट (Waqf Law) को लेकर चल रही सुनवाई पर सांसद ज़िया उर रहमान बर्क ने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि वक्फ कानून को लेकर समाज में कई भ्रांतियां हैं और इस पर गहराई से पुनर्विचार की आवश्यकता है। बर्क ने वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और पारदर्शिता को अहम बताया।
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Waqf Law को लेकर Supreme Court में सुनवाई पर बोले सांसद Zia Ur Rehman Barq: “समाज की भावनाएं जुड़ी हैं, पारदर्शिता जरूरी”
वक्फ अधिनियम (Waqf Act) को लेकर चल रही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बीच, समाजवादी पार्टी के सांसद ज़िया उर रहमान बर्क ने इस मामले पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि वक्फ कानून एक संवेदनशील विषय है, जिससे देश की मुस्लिम आबादी की आस्था और धार्मिक भावना जुड़ी हुई है। सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधता को चुनौती दिए जाने से मुस्लिम समाज में बेचैनी है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कानून में कोई सुधार की ज़रूरत है, तो वह लोकतांत्रिक और संवैधानिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में वक्फ अधिनियम 1995 की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और सरकारी जमीनों को वक्फ घोषित कर निजी उपयोग में लाना एकतरफा निर्णय है। कोर्ट इस पर संविधान की मूल भावना, मौलिक अधिकारों और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर विचार कर रही है।
ज़िया उर रहमान बर्क की प्रतिक्रिया
सांसद ज़िया उर रहमान बर्क ने कहा,
“वक्फ संपत्तियों की देखरेख और उनके सही उपयोग को लेकर समाज की चिंता स्वाभाविक है। अगर कानून में पारदर्शिता की कमी है तो उस पर संसद में चर्चा होनी चाहिए, ना कि इसे पूरी तरह से असंवैधानिक बताकर हटाया जाए।”
बर्क का मानना है कि वक्फ संपत्तियाँ समाज की धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक जरूरतों के लिए होती हैं और उनका प्रबंधन बेहद जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि इस कानून में सुधार की आवश्यकता है, लेकिन इसे निरस्त करना मुस्लिम समाज के खिलाफ अन्याय होगा।
राजनीतिक असर और बयानबाजी
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के साथ-साथ राजनीतिक हलकों में भी बहस तेज हो गई है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पहले ही कह चुके हैं कि अगर वक्फ कानून खत्म हुआ, तो यह देश की अल्पसंख्यक नीतियों पर सवाल खड़ा करेगा। वहीं दूसरी ओर कुछ राजनीतिक दलों का दावा है कि वक्फ बोर्ड के तहत आने वाली संपत्तियों की पारदर्शिता पर सवाल उठाना जरूरी है।
क्या कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ?
कानून के जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट को यह देखना होगा कि वक्फ अधिनियम संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप है या नहीं। साथ ही, वक्फ बोर्ड की कार्यशैली, संपत्तियों की निगरानी, और नियमों की पारदर्शिता पर भी नए मानक तय किए जा सकते हैं।
वक्फ बोर्ड की चुनौतियां
भारत में वक्फ बोर्ड के अधीन लाखों संपत्तियाँ हैं, जिनका उपयोग धार्मिक संस्थानों, कब्रिस्तानों, मदरसों, और गरीबों की मदद के लिए किया जाता है। हालांकि, समय-समय पर वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जा, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप भी लगते रहे हैं।
ज़िया उर रहमान बर्क का मानना है कि सरकार को वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए तकनीकी उपाय जैसे डिजिटल रजिस्ट्रेशन, ऑनलाइन ट्रैकिंग सिस्टम और थर्ड-पार्टी ऑडिट लागू करना चाहिए।
क्या हो सकता है आगे का रास्ता?
सांसद बर्क और कई मुस्लिम नेताओं की राय है कि अगर सरकार और न्यायपालिका साथ मिलकर वक्फ कानून में व्यवस्थित संशोधन करें, तो इससे समाज में भरोसा बढ़ेगा। पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रभावी निगरानी के लिए अलग से रेगुलेटरी बॉडी भी गठित की जा सकती है।
निष्कर्ष
Waqf कानून को लेकर देश में एक नई बहस शुरू हो चुकी है। ज़िया उर रहमान बर्क का यह बयान इस दिशा में एक संयमित और संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई का फैसला न सिर्फ मुस्लिम समाज बल्कि देश की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय प्रणाली को भी प्रभावित करेगा।