सुप्रीम कोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाने के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को बदल दिया है। सितंबर 2022 में बिलासपुर हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए 58 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाई थी।
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रायपुर। सुप्रीम कोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाने के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को बदल दिया है। सितंबर 2022 में बिलासपुर हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए 58 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाई थी। इसके विरोध में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बिलासपुर हाईकोर्ट की रोक को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में रुकी हुई भर्तियों की राह भी खुल गई है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते हीं युवाओं के लिए अब नौकरी की राह खुल गयी है। प्रमोशन का रास्ता भी साफ हो गया। वहीं इसको लेकर अब श्रेय की राजनीति भी शुरू हो गई है। बीजेपी इसे अपनी वैचारिक जीत बता रही है। तो वहीं कांग्रेस का कहना है की भूपेश सरकार ने बड़े वकीलों को हायर किया जिसका परिणाम 58% आरक्षण की बहाली है।
साल 2012 में आरक्षण व्यवस्था में किया गया था बदलाव
बता दें कि छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती रमन सरकार ने साल 2012 में छत्तीसगढ़ की आरक्षण व्यवस्था में बदलाव किया था। राज्य में 50% आरक्षण की जगह 58% आरक्षण लागू किया गया था। सरकार के इस फैसले के बाद राज्य में एसटी को 32%, एससी को 12% और ओबीसी को 14% आरक्षण दिया जा रहा था। राज्य सरकार द्वारा दिए गए इस आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका पेश होने के बाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2022 में 58% आरक्षण को असंवैधानिक मानते हुए खारिज किया था। इसके बाद से राज्य में आरक्षण 50% हो गया था। इसी समय से राज्य में सभी नई भर्तियों पर रोक लग गई थी। पीएससी, व्यापम के परिणाम भी प्रभावित हो रहे थे। हजारों लोग सरकारी नौकरी के दरवाजे पर आकर रुके हुए थे। भूपेश सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में राज्य का पक्ष रखा, जिसके बाद 58% आरक्षण बहाल कर राहत दी है।