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सूचना का अधिकार अधिनियम 2005: पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की दिशा में एक कदम

आरटीआई अधिनियम से संबंधित चुनौतियाँ । भविष्य की दिशा: RTI को सशक्त बनाने के उपाय ।

By HO BUREAU 

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सूचना लोकतंत्र की ऑक्सीजन है।” – (यूनेस्को)

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सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 भारतीय लोकतंत्र में नागरिकों को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन प्रदान करता है। यह अधिनियम नागरिकों को सरकारी रिकॉर्ड तक पहुँचने का अधिकार देता है, जिससे भ्रष्टाचार को कम करने और प्रशासनिक कार्यों को अधिक प्रभावी बनाने में सहायता मिलती है। हालांकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ भी देखी गई हैं।

  1. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

सूचना का अधिकार अधिनियम लागू होने से पहले भारत में पारदर्शिता और सूचना के अधिकार को लेकर कई आंदोलन हुए। 1990 के दशक में सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने सूचना के अधिकार की मांग की थी। राजस्थान में ‘मजदूर किसान शक्ति संगठन’ (MKSS) ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। 2002 में केंद्र सरकार ने एक प्रारंभिक सूचना अधिनियम पारित किया, जिसे 2005 में एक मजबूत रूप में लागू किया गया।

  1. सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
  2. सूचना प्राप्ति का अधिकार: नागरिक किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना मांग सकते हैं।
  3. उत्तरदायित्व: प्रत्येक विभाग में लोक सूचना अधिकारी (PIO) नियुक्त किया जाना आवश्यक है।
  4. समय सीमा: सूचना प्रदान करने के लिए अधिकतम 30 दिनों की समय सीमा निर्धारित है।
  5. अपील प्रक्रिया: यदि सूचना असंतोषजनक हो, तो प्रथम और द्वितीय अपील की जा सकती है।
  6. रियायती शुल्क: गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के नागरिकों के लिए आवेदन निःशुल्क है।
  7. अपवाद: राष्ट्रीय सुरक्षा, गोपनीयता और व्यक्तिगत डेटा से संबंधित कुछ सूचनाएँ छूट के अंतर्गत आती हैं।
  8. आरटीआई के तहत उजागर हुए प्रमुख घोटाले

RTI का उपयोग करके कई बड़े घोटाले उजागर हुए हैं, जिनमें शामिल हैं:

✅ कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (2010): आयोजन में भ्रष्टाचार और धन की हेराफेरी का खुलासा।

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✅ आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला (2010): सेना के लिए बनाए गए फ्लैट्स में अनियमितताएँ।

✅ कोयला घोटाला (2012): कोयला खदानों के गलत आवंटन से संबंधित मामला।

✅ 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2008): गलत तरीके से स्पेक्ट्रम आवंटन का खुलासा।

  1. आरटीआई अधिनियम से संबंधित चुनौतियाँ

❌ सूचना का दुरुपयोग: व्यक्तिगत लाभ के लिए आरटीआई का गलत उपयोग।

❌ सूचना देने में देरी: कई विभाग समय पर सूचना प्रदान नहीं करते।

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❌ ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी: जिससे अधिनियम का पूरा लाभ नहीं मिलता।

❌ आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले: जिससे नागरिकों में भय का माहौल बनता है।

❌ सरकारी असहयोग: कई विभाग जानबूझकर जानकारी देने में देरी करते हैं या मना कर देते हैं।

❌ सूचना आयोगों की नियुक्ति में देरी: इससे अपील की प्रक्रिया धीमी होती है।

  1. अंतरराष्ट्रीय तुलना

भारत में RTI कानून अन्य देशों की तुलना में सशक्त है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ हैं।

✅ स्वीडन: विश्व में पहला सूचना का अधिकार कानून (1766)।

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✅ यूएसए: ‘फ्रीडम ऑफ इंफॉर्मेशन एक्ट’ (1966) लागू।

✅ यूनाइटेड किंगडम: 2000 में ‘फ्रीडम ऑफ इंफॉर्मेशन एक्ट’ लागू।

✅ भारत: 2005 में मजबूत RTI अधिनियम लागू, लेकिन कार्यान्वयन में समस्याएँ।

  1. भविष्य की दिशा: RTI को सशक्त बनाने के उपाय

✔️ सूचना आयोगों की स्वतंत्रता: सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त बनाया जाए।

✔️ व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा: भ्रष्टाचार उजागर करने वालों को सुरक्षा दी जाए।

✔️ ऑनलाइन प्रणाली का विकास: RTI आवेदन प्रक्रिया को सरल और डिजिटल बनाया जाए।

✔️ सख्त दंड: सूचना देने में देरी करने वाले अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई हो।

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✔️ निगरानी तंत्र को मजबूत करना: सूचना आयोगों को अधिक अधिकार दिए जाएँ।

“सूचना सत्ता है, और जब नागरिकों को इसकी पहुँच मिलती है, तो वे अधिक सशक्त होते हैं।” – (नोम चॉम्स्की)

 निष्कर्ष

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 नागरिकों को सशक्त बनाने और प्रशासन को पारदर्शी बनाने का एक प्रभावी माध्यम है। हालाँकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जागरूकता बढ़ाने, सुरक्षा उपायों को मजबूत करने और सिस्टम में सुधार की आवश्यकता है। RTI केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं बल्कि एक सशक्त लोकतांत्रिक उपकरण है, जिससे नागरिक शासन में सुधार कर सकते हैं।

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