राणा सांगा पर छिड़े संग्राम पर गरमाई सियासत से सपा का सियासी समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है। सपा दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूले के साथ ठाकुर वोट बैंक की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है
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लखनऊ। राणा सांगा पर छिड़े संग्राम पर गरमाई सियासत से सपा का सियासी समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है। सपा दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूले के साथ ठाकुर वोट बैंक की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है। बीजेपी राणा सांगा के बहाने सपा को हिंदू विरोधी कठघरे में खड़ा करने में जुटी है और अगड़े वोट बैंक को साधने की कवायद कर रही है,
मुलायम सिंह यादव के दौर में सपा के सियासी एजेंडे में ठाकुर वोटर अहम हुआ करते थे। मुलायम सिंह के राइट हैंड मोहन सिंह और अमर सिंह जैसे ठाकुर नेता हुआ करते थे। सपा का कोर वोटबैंक यादव और मुस्लिम के बाद ठाकुर हुआ करता था, मुलायम सिंह ने सियासी आखड़े में इसी चरखा दांव से अपने विपक्षी को चित करने में माहिर थे। अब उनके बेटे और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने राजनीतिक विरोधियों को मात देने के लिए ‘पीडीए’ (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) दांव को आजमा रहे हैं। ऐसे में सपा सांसद रामजीलाल सुमन का मेवाड़ के शासक राणा सांगा पर संसद में दिए गए बयान से राजनीतिक तुफान खड़ा हो गया है, जिसके सियासी भंवर में अखिलेश यादव उलझे हुए नजर आ रहे हैं।
अब जहां रामजीलाल सुमन ने खुले तौर पर यह कह दिया है कि प्रशासन कार्यवाही नही करता तो वह खुद निपट लेंगे, इस बयान से साफ है कि राणा सांगा को गद्दार कहने वाले रामजी लाल सुमन ने खुली चेतावनी दे डाली है, इन सब के बीच बीएसपी प्रमुख मायावती का बयान सपा की और टेंशन बढ़ाने वाला है। फिलहाल अब यह विवाद सपा को कितना नुकसान पहुंचाता है, शायद सपा प्रमुख ये भांप चुके हैं कि इससे उनका राजनैतिक नुकसान हो सकता है तभी सपा नेता सिर्फ बयानों तक ही सिमटते नजर आ रहे हैं।