प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी चुनावी रणनीति में जातिगत समीकरणों को प्राथमिकता देकर विपक्ष को चौंका दिया है। यह कदम विपक्षी गठबंधनों की एकता को चुनौती देने वाला माना जा रहा है। पीएम मोदी की यह रणनीति न केवल सामाजिक समीकरणों को साधने का प्रयास है, बल्कि इससे चुनावी फायदे की उम्मीद भी की जा रही है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जातिगत समीकरणों को एक बार फिर केंद्र में लाकर देश की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। ओबीसी, दलित, पिछड़े वर्ग, और अन्य जातीय समूहों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में मोदी सरकार ने नीतिगत घोषणाओं और भाषणों के माध्यम से साफ संकेत दिया है कि जाति आधारित जनसमूहों की भूमिका अब रणनीति का अहम हिस्सा बनने जा रही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने हालिया भाषणों में बार-बार पिछड़े वर्गों के योगदान और उनके साथ भाजपा के रिश्ते को रेखांकित किया है। इससे विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस और INDIA गठबंधन में शामिल अन्य दलों की रणनीति में खलबली मच गई है, जो जातिगत जनगणना और आरक्षण के मुद्दों को लेकर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे थे।
मोदी का यह जाति केंद्रित विमर्श, केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री का यह रुख उस समय आया है जब विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बना रहा था। लेकिन मोदी ने इसी मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ते हुए इसे “सबका साथ, सबका विकास” की नई परिभाषा में ढालने की कोशिश की।
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को अब दोहरी रणनीति बनानी पड़ेगी—एक ओर वे सामाजिक न्याय की बात करते हुए जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश करेंगे, वहीं दूसरी ओर मोदी के इस जाति कार्ड के जवाब में एक ठोस नीति भी पेश करनी होगी। लेकिन मोदी की छवि और उनकी पकड़ ने विपक्ष के इस प्रयास को कमजोर कर दिया है।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी की यह रणनीति पिछड़े और दलित वर्गों के वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास है, जो अब तक बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय दलों के समर्थन में जाते रहे हैं। अगर भाजपा इस वर्ग में मजबूत पकड़ बना लेती है, तो विपक्ष के लिए 2024 का चुनाव मुश्किल हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि जातिगत आंकड़ों की राजनीति की बजाय समावेशी विकास और अवसरों की समानता पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी दावा किया है कि भाजपा सरकार ने अब तक के शासनकाल में सबसे ज्यादा फायदा पिछड़े वर्गों को ही पहुंचाया है, चाहे वो स्वास्थ्य योजनाएं, शिक्षा में आरक्षण, या आवास योजनाएं हों।
मोदी का यह दृष्टिकोण उस वर्ग को लुभा सकता है जो आरक्षण के नाम पर हो रही राजनीति से थक चुका है और वास्तविक विकास की ओर देख रहा है। विपक्ष जहां केवल जाति की बात कर रहा है, वहीं मोदी उसमें विकास को जोड़कर एक नई विमर्शधारा प्रस्तुत कर रहे हैं।
INDIA गठबंधन की बैठकों और बयानों से यह साफ झलक रहा है कि वे जातिगत जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश में हैं। लेकिन पीएम मोदी की रणनीति ने इस मुद्दे को जटिल बना दिया है। अगर विपक्ष इससे निपटने के लिए संगठित और विचारधारा आधारित नीति नहीं बनाता, तो मोदी की यह चाल उन्हें चुनावी तौर पर भारी पड़ सकती है।