लोकतांत्रिक परंपरा में हर पीढ़ी का काम करना है। अगली पीढ़ी को तैयार करना है, लेकिन जनता ने जिन्हें बार-बार नकार दिया है, वे न संसद में चर्चा होने देते हैं और न ही लोकतंत्र की भावना का सम्मान करते हैं। न ही वे लोगों की आकांक्षाओं को समझते हैं। इसका परिणाम यह है कि वे जनता की उम्मीदों पर कभी भी खरे नहीं उतरते। इसी के चलते जनता उन्हें बार-बार रिजेक्ट कर दे रही है।
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नई दिल्ली। लोकतांत्रिक परंपरा में हर पीढ़ी का काम करना है। अगली पीढ़ी को तैयार करना है, लेकिन जनता ने जिन्हें बार-बार नकार दिया है, वे न संसद में चर्चा होने देते हैं और न ही लोकतंत्र की भावना का सम्मान करते हैं। न ही वे लोगों की आकांक्षाओं को समझते हैं। इसका परिणाम यह है कि वे जनता की उम्मीदों पर कभी भी खरे नहीं उतरते। इसी के चलते जनता उन्हें बार-बार रिजेक्ट कर दे रही है। ये बातें प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार (25 नवंबर) को संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत में कही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सांसदों से संसद में स्वस्थ चर्चा करने की अपील की।
उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए संसद में चर्चा न होने देने का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘साल 2024 का ये अंतिम कालखंड चल रहा है। देश पूरे उमंग और उत्साह के साथ 2025 के स्वागत की तैयारी में लगा हुआ है। संसद का ये सत्र अनेक प्रकार से विशेष है। अब सबसे बड़ी बात है कि हमारे संविधान के 75 साल की यात्रा, 75वें साल में उसका प्रवेश, ये अपने आप में लोकतंत्र के लिए बहुत ही उज्ज्वल अवसर है।
पीएम मोदी ने कहा कि लोकतंत्र की ये शर्त है कि हम जनता-जनार्दन की भावनाओं का आदर करें उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए लगातार मेहनत करें। जिनको जनता ने लगातार नकार दिया है, वे अपने साथियों की भावनाओं का भी अनादर करते हैं, लोकतंत्र की भावनाओं का अनादर करते हैं। मैं आशा करता हूं कि हमारे नए साथियों को अवसर मिले, सभी दल में नए साथी हैं, उनके पास नए विचार हैं, भारत को आगे ले जाने के लिए नई कल्पनाएं हैं।
भारत की तरफ बहुत आशाभरी नजरों से देख रहा विश्व
आज विश्व भारत की तरफ बहुत आशाभरी नजरों से देख रहा है। भारत के प्रति जो आकर्षण बढ़ा है, उसको बल प्रदान करने वाला हमारा व्यवहार रहना चाहिए। विश्व के अंदर भारत को ऐसे अवसर बहुत कम मिलते हैं, जो आज मिले हैं। भारत की संसद से वो संदेश भी जाना चाहिए कि भारत के मतदाता, उनका लोकतंत्र के प्रति समर्पण, उनका संविधान के प्रति समर्पण, उनका संसदीय कार्य पद्धति पर विश्वास, संसद में बैठे हुए हम सबको जनता-जनार्दन की इन भावनाओं पर खरा उतरना ही पड़ेगा।
‘हमें जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना ही होगा’
प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद में बैठे हुए हम सभी को जनता जनार्दन की भावनाओं पर खरा उतरना ही पड़ेगा। हम बहुत ही स्वस्थ तरीके से संसद में चर्चा करें। आने वाली पीढ़ियां उसे पढ़ेंगी और उससे प्रेरणा लेंगी। मुझे आशा है कि ये सत्र बहुत ही परिणामकारी हो। भारत की वैश्विक गरिमा को बल देने वाला हो, नए सांसद और विचारों को बल देने वाला हो।