पहलगाम आतंकी हमले के बाद, रांची में रह रहे एक पाकिस्तानी मूल के बच्चे को भारत सरकार ने डिपोर्ट कर दिया है। यह बच्चा अपनी मां के साथ भारत में रह रहा था, जबकि उसका पिता पाकिस्तान में है। इस मानवीय पहलू ने आतंकवाद के साए में पिस रहे आम नागरिकों की स्थिति को उजागर किया है।
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पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने सुरक्षा के मद्देनज़र कई सख्त कदम उठाए हैं। इन्हीं में से एक मामला रांची से सामने आया है, जहां एक पाकिस्तानी मूल के बच्चे को डिपोर्ट कर दिया गया। यह बच्चा पिछले कुछ वर्षों से अपनी भारतीय मां के साथ रांची में रह रहा था, जबकि उसके पिता पाकिस्तान में फंसे हुए हैं। इस फैसले ने सुरक्षा बनाम मानवता की बहस को एक बार फिर से जन्म दे दिया है।
सूत्रों के अनुसार, बच्चा भारत में वीजा समाप्त होने के बाद भी रह रहा था। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत की खुफिया एजेंसियों और गृह मंत्रालय ने सभी संदिग्ध नागरिकों की जांच तेज कर दी है। इसी दौरान रांची में रह रहे इस बच्चे की पहचान हुई, जो अवैध रूप से भारत में रह रहा था।
सबसे मार्मिक पहलू यह है कि यह बच्चा अपनी मां के साथ भारत में रह रहा था और अब अलग किया गया है। मां का कहना है कि उनका बेटा भारत में जन्मा और यहीं पला-बढ़ा है, उसे पाकिस्तान से कोई वास्ता नहीं है। लेकिन दस्तावेज़ी प्रक्रिया के अनुसार वह अभी भी पाकिस्तानी नागरिक है।
इस कहानी ने पारिवारिक बिखराव, सीमापार रिश्तों की जटिलता, और आतंकवाद की वजह से प्रभावित आम नागरिकों की स्थिति को उजागर किया है। लोगों का कहना है कि सरकार को ऐसे मामलों में सहजता और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, खासकर तब जब कोई आपराधिक पृष्ठभूमि न हो।
पहलगाम आतंकी हमले में निर्दोष पर्यटकों की हत्या के बाद सरकार ने देश भर में सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी है। राज्यों को अलर्ट पर रखा गया है और सभी संदिग्ध व्यक्तियों और विदेशियों की जांच की जा रही है। इस डिपोर्टेशन को भी इसी सुरक्षा अभियान का हिस्सा माना जा रहा है।
गृह मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, “भारत की सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी संदिग्ध नागरिक को भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
हालांकि, इस फैसले की मानवाधिकार संगठनों ने आलोचना की है। उनका कहना है कि बच्चा निर्दोष है और उसकी परवरिश भारत में हुई है, ऐसे में उसका जबरन निर्वासन मानवीय मूल्यों के खिलाफ है। साथ ही यह भी सवाल उठाया गया है कि क्या इस प्रक्रिया में परिवार से जुड़ी भावनाओं को ध्यान में रखा गया?
भारत जैसे देश में जहां अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, सीमा विवाद, और आतंकवाद एक गंभीर चिंता हैं, वहीं मानवता और संवेदनशीलता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह घटना एक बार फिर इस बहस को जन्म देती है कि किस तरह से विदेशी नागरिकों के मामलों में संतुलन बनाया जाए — सुरक्षा और संवेदना के बीच।