जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर विपक्ष ने केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय पर सीधा निशाना साधा है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि सुरक्षा चूक और खुफिया एजेंसियों की विफलता के लिए गृह मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। सरकार से जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग करते हुए, राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस छिड़ गई है।
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला अब केवल एक सुरक्षा मुद्दा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत के बाद देशभर में आक्रोश का माहौल है, और विपक्ष ने सीधे तौर पर गृह मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराते हुए तीखे सवाल उठाए हैं। विपक्षी दलों ने कहा कि यदि समय रहते खुफिया जानकारी को गंभीरता से लिया जाता और सुरक्षा चक्र मजबूत किया जाता, तो यह हमला रोका जा सकता था।
कांग्रेस प्रवक्ता ने प्रेस वार्ता में कहा, “जब देश के सबसे संवेदनशील राज्य में इतनी बड़ी सुरक्षा विफलता होती है, तो इसका सीधा उत्तरदायित्व गृह मंत्रालय पर आता है। क्या गृह मंत्रालय इस चूक की जिम्मेदारी लेगा?” इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में बहस तेज हो गई है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार केवल भाषण देती है, लेकिन जमीनी सुरक्षा प्रबंधन में असफल रही है।
सूत्रों के अनुसार, हमले की आशंका पहले ही खुफिया एजेंसियों द्वारा जाहिर की गई थी, लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया। विपक्ष का कहना है कि यह न केवल एक तकनीकी विफलता, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का भी मामला है। आम जनता और पर्यटकों की सुरक्षा सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है और इसमें कोताही बरतना बेहद गंभीर है।
विपक्ष ने मांग की है कि एक स्वतंत्र जांच आयोग गठित किया जाए जो इस हमले से जुड़ी सभी परिस्थितियों की जांच करे और दोषियों को सामने लाया जाए, चाहे वे किसी भी पद पर क्यों न हों।
सरकार ने हालांकि दावा किया है कि सुरक्षाबलों ने तत्काल कार्रवाई की और हालात को काबू में किया। गृहमंत्रालय ने कहा है कि आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए हर संभव प्रयास जारी हैं। लेकिन आम जनता और पीड़ित परिवारों का गुस्सा अब शब्दों से नहीं, कार्रवाई से शांत किया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर भी सरकार से जवाबदेही की मांग बढ़ती जा रही है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक मासूम जानें जाती रहेंगी और कब तक राजनीति और प्रशासनिक लापरवाही इस देश की सुरक्षा को खतरे में डालेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के हमले केवल सुरक्षा चुनौती नहीं हैं, बल्कि वे सरकार की नीतिगत गंभीरता और कार्यशैली पर भी सवाल उठाते हैं। विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल सही हैं और सरकार को इन्हें खारिज करने के बजाय पारदर्शी तरीके से जांच करानी चाहिए।
देश की जनता को यह जानने का हक है कि कहां चूक हुई, किसने चूक की, और आगे ऐसी घटनाएं रोकने के लिए क्या रणनीति अपनाई जा रही है।