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संत रविदास जयंती पर वाराणसी में 10 लाख श्रद्धालुओं करेंगे दर्शन, सुबह से दर्शन के लिए लगी भीड़

संत शिरोमणि रविदास की जयंती आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। वाराणसी स्थित उनके जन्मस्थली सीर गोवर्धन स्थित मंदिर में दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु कई दिनों पहले पहुंचे है

By up bureau 

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वाराणसी। संत शिरोमणि रविदास की जयंती आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। वाराणसी स्थित उनके जन्मस्थली सीर गोवर्धन स्थित मंदिर में दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु कई दिनों पहले पहुंचे है. जबकि संत निरंजन दास दो दिन पहले 3 हजार श्रद्धालुओं के साथ बेगमपुरा से काशी पहुंच गए है। सीर गोवर्धन का पूरा क्षेत्र इस समय मिनी पंजाब बना हुआ है. टेंट लगाकर लाखों की संख्या में लोग रह रहें हैं। सीर गोवर्धन क्षेत्र में देश के हर हिस्से सहित देश विदेश से लोग पहुंचे हैं। संत रविदास के दर्शन करने के लिए पीएम मोदी, राहुल गांधी सहित कई नेता भी अपनी हाजिरी लगा चुके है।

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काशी का सीर गोवर्धन क्षेत्र में संत रविदास की जयंती पर 10 लाख लोगों की पहुंचने की संभावना है। इस दौरान सेवा करने के लिए 5000 सेवादार मंदिर में दे रहे सेवा दे रहे है। मंदिर प्रशासन द्वारा लोगों की सेवा के लिए वृहद किचन की तैयारी है। जिसमें हर घंटे 6-7 हजार लोगों की भोजन की व्यवस्था की गई है। बताया जा रहा है कि यहां पर 6 से अधिक भट्ठियों पर रोटियां पकाई जा रही है। करीब 20 लाख से अधिक रोटियां भक्तों के लिए बनाई जा रही है। इसमें सेवादार खाने की व्यवस्था, सुरक्षा की व्यवस्था, दर्शन करने की व्यवस्था, ट्रैफिक व्यवस्था के साथ-साथ अन्य व्यवस्थाओं को देखते हैं।

10 लाख लोगों की भीड़ की व्यवस्था को देखते हुए मंदिर प्रशासन द्वारा इसकी तैयारी पहले से ही करती है। जिससे किसी को कोई समय न हो। इस दौरान हरियाणा, पंजाब, बिहार, झारखंड व यूपी अन्य राज्यों से लगभग 5000 की संख्या में पहुंचे सेवादार यहां 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं की सेवा करते रहे।

संत रविदास मंदिर आने वाले भक्त लंगर जरूर छकते हैं इसलिए मंदिर प्रशासन द्वारा पांच जगह पर लंगर चलाया जा रहा है, जिसमें तीन बड़े लंगर पंडाल बनाए गए हैं। उसमें करीब 5000 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है। इस लंगर को संचालित करने के लिए एक पंडाल में 30 सेवादारों की तैनाती की गई है। भोजन लंगर में कुल चार प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं जिसमें छोला,दाल, सब्जी,मीठा चावल परोसा जाता है। इसको तैयार करने के लिए कुल 1000 सेवादार 18 घंटे काम करते हैं। इसमें सबसे बड़ा योगदान महिलाओं का होता है जो लगातार बड़े तवे पर रोटी बनाती हैं।

संत रविदास से जुड़ा इमली का पेड़, जहां श्रद्धालु मत्था टेकते है

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संत रविदास का गांव सीर गोवर्धन रैदासियों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। संत के मंदिर के साथ ही लगे इमली के पेड़ से रैदासियों की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। रैदासी इमली के पेड़ में कलावा जरूर बांधते हैं और मन्नत भी मांगते हैं. मान्यता है कि इसी इमली के पेड़ के नीचे बैठकर संत रविदास सत्संग किया करते थे। संत रविदास मंदिर के ट्रस्टी के एल सरोआ ने बताया कि संत हरिदास ने जब मंदिर की नींव रखी तब इमली का पेड़ सूखा हुआ था, लेकिन लगातार पानी देने से उसकी जड़ें फिर से हरी हो गईं। आज यह पेड़ का रूप ले चुका है और रैदासियों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है। स्थानीय लोग किसी भी शुभ अवसर पर इमली के पेड़ पर मौली बांधने आते हैं। संत रविदास की जयंती पर सीर आने वाला हर श्रद्धालु संत रविदास के मंदिर में चरण रज पाने के बाद इमली के पेड़ की भी परिक्रमा करता है।

संत रविदास का संक्षिप्त परिचय, कैसे बनें संत

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार संत रविदास को उनके पिता ने घर से निकाल दिया था। जिसके बाद वे एक कुटिया में रहने लगे और साधु-संतों की सेवा करने लगे थे। संत रविदास जूते-चप्पल बनाते थे. फिर वह भक्ति आंदोलन का हिस्सा बनें। कुछ संत रविदास के विचारों से प्रभावित होने लगे और उनके अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती गई तभी से वे गुरु रविदास शिरोमणि के रूप में प्रसिद्ध हुए।

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