उत्तराखंड में निकाय चुनाव का दंगल चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ और दिलचस्प हो गया है। इस बार निकाय चुनाव वैलेट पेपर से होगा। जिससे इस बार ईवीएम और दोषारोपण का गाना ही खत्म हो जाएगा । आपको बता दें कि 2018 में भी निकाय चुनाव बैलेट पेपर से ही हुए थे लेकिन विपक्ष इस बार खास जोर बैलेट पेपर से चुनाव कराने पर दे रहा था। ऐसे में विपक्ष की मुराद पूरी हुई ऐसे में सवाल ये कि बैलेट पर चुनाव होने के बाद क्या कुछ बदलेंगे।
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देहरादून। उत्तराखंड में निकाय चुनाव का दंगल चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ और दिलचस्प हो गया है। इस बार निकाय चुनाव वैलेट पेपर से होगा। जिससे इस बार ईवीएम और दोषारोपण का गाना ही खत्म हो जाएगा । आपको बता दें कि 2018 में भी निकाय चुनाव बैलेट पेपर से ही हुए थे लेकिन विपक्ष इस बार खास जोर बैलेट पेपर से चुनाव कराने पर दे रहा था। ऐसे में विपक्ष की मुराद पूरी हुई ऐसे में सवाल ये कि बैलेट पर चुनाव होने के बाद क्या कुछ बदलेंगे।
प्रदेश में निकाय चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही निकाय का दंगल भी शुरू हो गया है। जिसमें सियासी दल अपने चुनावी तरकश से रणनीति के सियासी बाण चला रहे हैं। पक्ष हो या विपक्ष दोनों इस बार निकाय चुनाव को लेकर अपने रणनीति का ताना बना बुन रहे हैं क्योंकि 100 निकायों में जीत हासिल करनी है तो उसके लिए अभी से ही कमर कसनी होगी।
इस बार का निकाय चुनाव दिलचस्प इसलिए हो रहा है कि इस बार भी बैलेट पेपर से चुनाव होगा यानि चुनाव नतीजे आने के बाद कोई भी ईवीएम का रोना नहीं रो पाएगा । निकाय चुनाव को शांतिपूर्ण कराने के लिए 30 हजार अलग – अलग विभागों के कर्मचारी और 18 हजार सुरक्षा कर्मी तैनात किए जा रहे है। इसके अलावा 53 प्रेक्षक ओर 20 व्यय प्रेक्षक भी लगाए जाएंगे।
निकाय चुनाव में कांग्रेस को उम्मीद है कि बैलट पेपर से चुनाव होने पर चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में होंगे क्योंकि जनता कांग्रेस के साथ खड़ी है। जबकि भाजपाई कहे रहे हैं कि चुनाव ईवीएम से हो या पोस्टल बैलेट से कोई फर्क नहीं पड़ता। हम तैयार थे , हैं और रहेंगे जीत हमारी होगी। निकाय चुनाव को लेकर सियासी दल अपनी तैयारी कर रहे हैं और राज्य निर्वाचन आयोग अपनी तैयारी। लेकिन राजनीतिक दलों की धड़कन इस बात से तेज हो रही है कि ईवीएम की जगह पोस्टल बैलेट से हो रहे चुनाव सियासी की क्या तस्वीर बदलेंगे।