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Maharashtra: मोदी ने अमरावती में पीएम मित्र पार्क की रखी आधारशिला

PM मोदी ने कहा कि दो दिन पहले ही हम सबने विश्वकर्मा पूजा का उत्सव मनाया है। इसके बाद 20 सितंबर को वर्धा की पवित्र धरती पर हम पीएम विश्वकर्मा योजना की सफलता का उत्सव मना रहे हैं। आज ये दिन इसलिए भी खास है, क्योंकि 1932 में आज ही के दिन महात्मा गांधी जी ने अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान शुरू किया था।

By HO BUREAU 

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नई दिल्ली। PM मोदी ने कहा कि दो दिन पहले ही हम सबने विश्वकर्मा पूजा का उत्सव मनाया है। इसके बाद 20 सितंबर को वर्धा की पवित्र धरती पर हम पीएम विश्वकर्मा योजना की सफलता का उत्सव मना रहे हैं। आज ये दिन इसलिए भी खास है, क्योंकि 1932 में आज ही के दिन महात्मा गांधी जी ने अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान शुरू किया था।

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ऐसे में विश्वकर्मा योजना के एक साल पूर्ण होने का ये उत्सव,विनोबा भावे जी की ये साधना स्थली, महात्मा गांधी जी की कर्मभूमि, वर्धा की ये धरती, ये उपलब्धि और प्रेरणा का ऐसा संगम है, जो विकसित भारत के हमारे संकल्पों को नई ऊर्जा देगा। विश्वकर्मा योजना के जरिए हमने श्रम से समृद्धि, इसका कौशल से बेहतर कल का जो संकल्प लिया है। वर्धा में बापू की प्रेरणाएं हमारे उन संकल्पों को सिद्धि तक ले जाने का माध्यम बनेंगी।

PM ने कहा कि आज अमरावती में पीएम मित्र पार्क की आधारशिला भी रखी गई है। आज का भारत अपनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री को वैश्विक बाज़ार में टॉप पर ले जाने के लिए काम कर रहा है। देश का लक्ष्य है- भारत की टेक्सटाइल सेक्टर के हजारों वर्ष पुराने गौरव को पुनर्स्थापित करना। अमरावती का पीएम मित्र पार्क इसी दिशा में एक और बड़ा कदम है। मैं इस उपलब्धि के लिए भी आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। हमने विश्वकर्मा योजना की पहली वर्षगांठ के लिए महाराष्ट्र को चुना, हमने वर्धा की इस पवित्र धरती को चुना, क्योंकि विश्वकर्मा योजना केवल सरकारी प्रोग्राम भर नहीं है।

विकसित भारत का एक रोडमैप है यह योजना  

ये योजना भारत के हजारों वर्ष पुराने कौशल को विकसित भारत के लिए इस्तेमाल करने का एक रोडमैप है। आप याद करिए हमें इतिहास में भारत की समृद्धि के कितने ही गौरवशाली अध्याय देखने को मिलते हैं। इस समृद्धि का बड़ा आधार क्या था? उसका आधार था, हमारा पारंपरिक कौशल! उस समय का हमारा शिल्प, हमारी इंजीनियरिंग, हमारा विज्ञान! हम दुनिया के सबसे बड़े वस्त्र निर्माता थे। हमारा धातु-विज्ञान, हमारी मेटलर्जी भी विश्व में बेजोड़ थी। उस समय के बने मिट्टी के बर्तनों से लेकर भवनों की डिजाइन का कोई मुकाबला नहीं था।

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इस ज्ञान-विज्ञान को कौन घर-घर पहुंचाता था? सुतार, लोहार, सोनार, कुम्हार, मूर्तिकार, चर्मकार, बढ़ई-मिस्त्री ऐसे अनेक पेशे भारत की समृद्धि की बुनियाद हुआ करते थे। इसीलिए गुलामी के समय में अंग्रेजों ने इस स्वदेशी हुनर को समाप्त करने के लिए भी अनेक साजिशें की। इसलिए ही वर्धा की इसी धरती से गांधी जी ने ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा दिया था। ये देश का दुर्भाग्य रहा कि आजादी के बाद की सरकारों ने इस हुनर को वो सम्मान नहीं दिया, जो दिया जाना चाहिए था। उन सरकारों ने विश्वकर्मा समाज की लगातार उपेक्षा की।

जैसे-जैसे हम शिल्प और कौशल का सम्मान करना भूलते गए, भारत प्रगति और आधुनिकता की दौड़ में भी पिछड़ता चला गया। अब आज़ादी के 70 साल बाद हमारी सरकार ने इस परंपरागत कौशल को नई ऊर्जा देने का संकल्प लिया। इस संकल्प को पूरा करने के लिए हमने ‘पीएम विश्वकर्मा’ जैसी योजना शुरू की। विश्वकर्मा योजना की मूल भावना है- सम्मान, सामर्थ्य और समृद्धि ! यानि पारंपरिक हुनर का सम्मान ! कारीगरों का सशक्तिकरण ! और विश्वकर्मा बंधुओं के जीवन में समृद्धि ये हमारा लक्ष्य है। विश्वकर्मा योजना की एक और विशेषता है।

जिस बड़े पैमाने पर इस योजना के लिए अलग-अलग विभाग एकजुट हुए हैं, ये भी अभूतपूर्व है। देश के 700 से ज्यादा जिले, देश की ढाई लाख से ज्यादा ग्राम पंचायतें, देश के 5 हजार शहरी स्थानीय निकाय, ये सब मिलकर इस अभियान को गति दे रहे हैं। इस एक वर्ष में ही 18 अलग-अलग पेशों के 20 लाख से ज्यादा लोगों को इससे जोड़ा गया। सिर्फ साल भर में ही 8 लाख से ज्यादा शिल्पकारों और कारीगरों को स्किल ट्रेनिंग, Skill upgradation मिल चुकी है। अकेले महाराष्ट्र में ही 60 हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग मिली है।

साढ़े 6 लाख से ज्यादा विश्वकर्मा बंधुओं को आधुनिक उपकरण भी उपलब्ध

इसमें कारीगरों को modern machinery और digital tools जैसी नई टेक्नॉलजी भी सिखाई जा रही है। अब तक साढ़े 6 लाख से ज्यादा विश्वकर्मा बंधुओं को आधुनिक उपकरण भी उपलब्ध कराए गए हैं। इससे उनके उत्पादों की क्वालिटी बेहतर हुई है, उनकी उत्पादकता बढ़ी है। इतना ही नहीं हर लाभार्थी को 15 हजार रुपए का ई-वाउचर दिया जा रहा है। अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बिना गारंटी के 3 लाख रुपए तक लोन भी मिल रहा है। मुझे खुशी है कि एक साल के भीतर-भीतर विश्वकर्मा भाइयों-बहनों को 1400 करोड़ रुपए का लोन दिया गया है। यानि विश्वकर्मा योजना, हर पहलू का ध्यान रख रही है।

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तभी तो ये इतनी सफल है, तभी तो ये लोकप्रिय हो रही है।और अभी मैं हमारे जीतन राम मांझी जी प्रदर्शनी का वर्णन कर रहे थे। मैं प्रदर्शनी देखने गया था। मैं देख रहा था कितना अद्भुत काम परंपरागत रूप से हमारे यहां लोग करते हैं। और जब उनको नए आधुनिक technology tool मिलते हैं, training मिलते हैं, उनको अपना कारोबार बढ़ाने के लिए seed money मिलता है, तो कितना बड़ा कमाल करते हैं वो अभी मैं देखकर आया हूं।

इस क्षेत्र में करीब 85 हजार करोड़ रुपए की लागत से वैनगंगा-नलगंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना को हाल ही में मंजूरी दी गई है। इससे नागपुर, वर्धा, अमरावती, यवतमाल, अकोला, बुलढाणा इन 6 जिलों में 10 लाख एकड़ जमीन पर सिंचाई की सुविधा मिलेगी। हमारे महाराष्ट्र के किसानों की जो मांगें थीं, उन्हें भी हमारी सरकार पूरा कर रही है। प्याज पर एक्सपोर्ट टैक्स 40 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है।

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