देश की न्यायपालिका पर हाल के दिनों में हो रहे राजनीतिक हमलों के बीच सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने इस पर पहली बार खुलकर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका पहले से ही अनेक दबावों का सामना कर रही है, और अब उस पर लगातार हो रहे हमले स्थिति को और मुश्किल बना रहे हैं। यह बयान ऐसे वक्त पर आया है जब जजों की स्वतंत्रता और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर बहस तेज हो गई है।
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नई दिल्ली:
देश की न्यायपालिका पर लगातार हो रहे राजनीतिक और सार्वजनिक हमलों के बीच सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) का बयान सामने आया है। इस बयान में उन्होंने न्यायाधीशों पर हो रहे दबाव और लगातार बढ़ रही आलोचनाओं पर चिंता जाहिर की है।
किसी पब्लिक फोरम पर दिए गए बयान में उन्होंने कहा,
“As it is, we are struggling… हम जैसे-तैसे अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। न्यायपालिका पर अतिरिक्त हमलों से सिस्टम और दबाव में आ जाता है।”
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश के इस बयान ने न्यायिक स्वतंत्रता (Judicial Independence) को लेकर छिड़ी बहस को और भी गंभीर बना दिया है। यह बयान ऐसे समय पर आया है जब संसद से लेकर सोशल मीडिया तक, न्यायपालिका की भ्रमित छवि पेश करने की कोशिशें हो रही हैं।
पिछले कुछ समय में विभिन्न राजनीतिक दलों, खासकर विपक्षी नेताओं द्वारा न्यायिक फैसलों पर सवाल उठाए गए हैं। कभी किसी विशेष मामले में निर्णय को पक्षपाती कहा जाता है, तो कभी न्यायधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर आपत्ति जताई जाती है। ऐसे में अगला CJI का यह बयान उनके भीतर की व्यथा को दिखाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि जजों को भी “मानव” समझा जाए।
“हम भी इंसान हैं, हम पर भी आलोचना और विवाद असर डालते हैं।”
CJI ने साफ कहा कि लोकतंत्र में न्यायपालिका की गरिमा और उसकी स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। अगर उस पर लगातार हमले होते रहेंगे, तो आम आदमी का न्याय पर विश्वास डगमगाने लगेगा।
उन्होंने मीडिया से भी अपील की कि वो कोर्ट की कार्यप्रणाली को समझे और न्यायिक फैसलों को पूर्वाग्रह के बिना पेश करे।
हाल के कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में सुप्रीम कोर्ट के जजों पर व्यक्तिगत टिप्पणियां भी सामने आई हैं। यह ट्रेंड न केवल असंवैधानिक है बल्कि खतरनाक भी है, क्योंकि यह न्यायाधीशों की निष्पक्षता पर सीधा वार करता है।
CJI ने कहा कि
“हमारी चुप्पी को कमजोरी न समझा जाए। न्यायिक पद की गरिमा हमें जवाबी हमला करने की इजाज़त नहीं देती।”
वर्तमान हालात में ऐसा लग रहा है जैसे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की रेखाएं खिंचती जा रही हैं। कॉलेजियम सिस्टम, न्यायिक नियुक्ति और संवैधानिक मामलों पर राजनीतिक टिप्पणियां स्थिति को और उलझा रही हैं।
CJI का यह बयान उसी तनाव की अभिव्यक्ति के तौर पर देखा जा रहा है।
CJI ने कहा कि भारत की आम जनता आज भी न्यायपालिका को सबसे ज्यादा भरोसेमंद संस्थान मानती है। ऐसे में यह ज़िम्मेदारी भी न्यायाधीशों की है कि वे अपने फैसलों और कार्यप्रणाली से उस विश्वास को कायम रखें।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाना या हमला करना किसी भी रूप में उचित नहीं है। अगला CJI का यह बयान सिर्फ एक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था को लेकर एक गंभीर चेतावनी है। अब यह वक्त है जब सभी पक्ष—राजनीतिक, सामाजिक और मीडिया—को न्यायपालिका के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना होगा।