भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर स्थित सलाल डैम के गेट खोलने के फैसले के बाद पाकिस्तान में संभावित बाढ़ को लेकर चिंता बढ़ गई है। इस घटनाक्रम से दोनों देशों के बीच पहले से तनावपूर्ण संबंधों में और तीखापन आ सकता है। यह कदम इंडस वॉटर ट्रीटी की प्रासंगिकता और राजनीतिक प्रभावों पर भी सवाल खड़े करता है।
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भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुरानी इंडस वॉटर ट्रीटी (IWT) एक बार फिर चर्चा में है। इस बार मामला जम्मू-कश्मीर में स्थित सलाल डैम का है, जहां भारत ने अचानक डैम के गेट खोल दिए। इससे पाकिस्तान में संभावित बाढ़ के खतरे को लेकर चिंता की लहर दौड़ गई है। पाकिस्तान के सिंधु जल आयोग और प्रशासनिक अधिकारियों ने दावा किया है कि भारत ने बिना सूचना दिए यह कदम उठाया, जो संधि का उल्लंघन हो सकता है।
हालांकि, भारतीय अधिकारियों का कहना है कि यह कदम पूरी तरह से तकनीकी और आवश्यकता आधारित था। भारी बारिश और जलस्तर बढ़ने के कारण गेट खोलना ज़रूरी हो गया था, ताकि डैम की संरचना और आसपास के क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
भारत और पाकिस्तान के बीच पहले ही कूटनीतिक और सैन्य तनाव का माहौल है। ऐसे में सलाल डैम का मामला एक नए मोर्चे की शुरुआत कर सकता है। पाकिस्तान इसे “पानी के हथियार” के रूप में देख रहा है, जबकि भारत का कहना है कि इंडस वॉटर ट्रीटी के तहत भारत को जल के उपयोग का पूरा अधिकार है, खासकर जब बात घरेलू ज़रूरतों और बाढ़ प्रबंधन की हो।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह कदम रणनीतिक है और इससे पाकिस्तान को यह संदेश दिया जा रहा है कि पानी पर संप्रभु अधिकार भारत के पास है। अगर पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करता है, तो भारत भी अपने विकल्प खुला रख सकता है।
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से बनी इंडस वॉटर ट्रीटी को अब पुराने ढांचे की संधि माना जा रहा है। बदलते जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या दबाव और राजनीतिक परिस्थितियों के चलते इस पर पुनर्विचार की मांग कई बार उठ चुकी है। भारत कई मौकों पर संकेत दे चुका है कि वह इस संधि की समीक्षा कर सकता है, खासकर तब जब पाकिस्तान की ओर से निरंतर उकसावे वाली नीतियां जारी हैं।
भारत की जल नीति अब आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्वायत्तता की ओर बढ़ रही है। केंद्र सरकार विभिन्न जल परियोजनाओं पर तेजी से काम कर रही है ताकि अपने हिस्से के जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक से इस मामले में दखल देने की अपील की है। उनका आरोप है कि भारत की यह कार्रवाई न केवल संधि का उल्लंघन है, बल्कि इंसानी जीवन के लिए भी खतरा है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर अब तक चुप है और इसे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मामला मानता है।
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की यह प्रतिक्रिया राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है। जल संकट का अंतरराष्ट्रीयकरण करके वह भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहता है, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि भारत ने अभी भी संधि की मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया है।