एक FIR में आरोपी विजय शाह को "श्री" कहकर संबोधित करने पर विवाद खड़ा हो गया है। इस घटना ने पुलिस की निष्पक्षता और कानूनी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्षी दलों और नागरिक समाज ने पुलिस से जवाबदेही की मांग की है।
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हाल ही में दर्ज एक एफआईआर (FIR) में आरोपी विजय शाह को “श्री विजय शाह” कहकर संबोधित किया गया, जिससे सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में विवाद खड़ा हो गया है। आमतौर पर एफआईआर में किसी भी व्यक्ति को बिना विशेषण या सम्मानसूचक शब्दों के उल्लेख किया जाता है, खासकर जब वह आरोपी हो। ऐसे में “श्री” शब्द का इस्तेमाल पुलिस की निष्पक्षता पर सवालिया निशान खड़े करता है।
यह मामला सामने आते ही राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक पूर्वाग्रहपूर्ण रवैया है, जो कानून के समक्ष सभी को समान मानने के सिद्धांत के खिलाफ जाता है। विपक्ष ने दावा किया कि यह “श्री” शब्द का प्रयोग केवल इसलिए किया गया क्योंकि आरोपी किसी प्रभावशाली पद या व्यक्ति से जुड़ा हुआ है।
पुलिस विभाग की ओर से यह सफाई दी गई कि “श्री” शब्द आदतन इस्तेमाल में आया और इसका उद्देश्य किसी विशेष सम्मान या पक्षपात को दर्शाना नहीं था। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि एफआईआर एक कानूनी दस्तावेज है, जिसमें हर शब्द का महत्व होता है।
पूर्व IPS अधिकारियों और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह लापरवाही नहीं बल्कि एक गंभीर त्रुटि है जो न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। FIR जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया में इस तरह की चूक से न केवल आरोपी को लाभ मिल सकता है, बल्कि पीड़ित को न्याय मिलने में भी देरी हो सकती है।
इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ पार्टी पर हमला बोल दिया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या अब कानून केवल प्रभावशाली लोगों के लिए ही लचीला हो गया है? आम जनता ने भी सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की और पुलिस से पारदर्शिता बनाए रखने की अपील की।
विपक्षी नेता का कहना है कि अगर आम नागरिक की FIR होती, तो क्या उसमें भी ‘श्री’ लिखा जाता? यह भेदभाव साफ तौर पर यह दर्शाता है कि हमारे संस्थानों में प्रभावशाली लोगों के लिए नियम अलग हो जाते हैं।
इस घटना ने फिर से पुलिस सुधारों की आवश्यकता को सामने ला दिया है। भारत में कानून की दृष्टि में सभी समान हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं दर्शाती हैं कि व्यवहारिक स्तर पर अभी भी बहुत कुछ बदलना बाकी है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि पुलिस कर्मचारियों को नियमित रूप से संवेदनशीलता और कानूनी शुद्धता की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए ताकि वे किसी भी स्थिति में निष्पक्ष और सटीक दस्तावेज तैयार कर सकें।