एक कहावत तो आप सबने सुनी है कि अंधे के हाथ में बटेर लग जाना। ये कहावत झारखंड के लगभग हर विभाग पर शत-प्रतिशत सही बैठता है। ये हम क्यों कह रहे है चलिए आपको बताते हैं। झारखंड में हर साल भारी भरकम बजट पेश करने की परंपरा यही है। लेकिन इस भारी भरकम बजट का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि राज्य के अधिकारी विभागों को आवंटित राशि को खर्च करने में भी विफल रहे हैं।
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रांची। एक कहावत तो आप सबने सुनी है कि अंधे के हाथ में बटेर लग जाना। ये कहावत झारखंड के लगभग हर विभाग पर शत-प्रतिशत सही बैठता है। ये हम क्यों कह रहे है चलिए आपको बताते हैं। झारखंड में हर साल भारी भरकम बजट पेश करने की परंपरा यही है। लेकिन इस भारी भरकम बजट का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि राज्य के अधिकारी विभागों को आवंटित राशि को खर्च करने में भी विफल रहे हैं।
हालत अब ये है कि राज्य गठन के 24 सालों मे सरकार के द्वारा पेश किए गए बजट को देखें तो राज्य गठन के बाद से बजट में अब तक 20 गुना वृद्धि तो हो गई या ये कहें कि भारी भरकम बजट तो ले लिया गया । इन सबके बीच खर्च की स्थिति पर नजर डाले तो मालूम पड़ता है कि अलग-अलग विभाग पैसा खर्च करना ही नहीं चाहते या उनके अंदर खर्च करने की इच्छा शक्ति ही नहीं है।
बात दें कि हर वित्तीय वर्ष के अंतिम तिमाही में खर्च तेजी से होता है। लेकिन झारखंड में मुख्यमंत्री के फटकार लगाने के बाद भी विभाग के अधिकारी के कानों में जूं तक नहीं रेंगता। और अधिकारी अंत में राज्य के पैसे को रेवड़ी की तरह खर्च करना शुरू कर देते है।बावजूद इसके राज्य के हालात तो यह है राज्य सरकार के चालू वित्तीय वर्ष में नवंबर माह तक कुल बजट का आधा रुपया भी पैसा खर्च नहीं हो पाया।
सोच कर देखिए की नवंबर माह गुजर गया लेकिन इस बार भी कई विभाग अपने बजट को खर्च नहीं कर पाए है। और कई विभाग की स्थिति तो ये है की आवंटित हुए कुल पैसे का 20% भी खर्च नहीं कर पाए।सरकार राज्य प्रायोजित योजना का बजट करीब 54, 124 करोड रुपए था इसमें करीबन 29000 करोड रुपए ही खर्च कर पाए।. खर्च के मामले में सबसे अच्छी स्तिथि राज्य की प्राथमिक शिक्षा विभाग की है जिसमें अनुमानित 85% खर्च कर पाए।.
बात अगर ग्रामीण विकास की करें तो 68% ही खर्च हो पाए और जल संसाधन विभाग भी 64% के पर अटका हुआ है।और सोने पे सुहागा खर्च का सबसे खराब स्थिति अगर देखि जाए तो नगर विकास विभाग, आवास डिवीजन का कुल बजट 100 करोड रुपए है और इसमे से ₹1 भी खर्च नहीं हो पाया है।हालत यह है कि आईटी विभाग में भी करीबन 10% ही खर्च हो पाए और वैसे भी परिवहन विभाग की बजट चार प्रतिशत ही खर्च हो पाया।
इन आंकड़ों को देखे तो ये पता चलता है की सरकार के पास पैसे तो है लेकिन विभाग के अधिकारियों की इच्छा शक्ति नहीं है की इन पैसों का खर्च कर पाए। राज्य के राजस्व विभाग की हालत स्थित तो बहुत ही बेहतर है क्योंकि अपने लक्ष्य के अनुरूप उन्होंने राज्य को राजस्व बढ़ाने में अपनी पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ राज्य में राजस्व संग्रह में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
ऐसे में सवाल ये है की जब राज्य सरकार के पास पैसा तो है की लेकिन विभाग इन पैसों को खर्च नहीं करना चाहता।और इससे भी बाद सवाल ये है की इन विभागों की कोई सुध लेने वाला कोई क्यूँ नही है।और ऐसे स्तिथि आखिर कब तक बनी रहेगी। ये एक बड़ा सवाल है।