उत्तराखंड के नगर निकायों के चुनावी संग्राम में मलिन बस्तियों के मुद्दों ने राजनीति को गरमा दिया है। बस्तियों पर अस्तित्व को लेकर मंडरा रहे संकट को टालने के लिए राज्य सरकार ने तीसरी बार अध्यादेश लाने का काम किया है। अध्यादेश को लेकर एनजीटी के कड़े रुख ने कांग्रेस को भाजपा पर हमले के लिए सियासी हथियार थमाने का काम किया है ।
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देहरादून। उत्तराखंड के नगर निकायों के चुनावी संग्राम में मलिन बस्तियों के मुद्दों ने राजनीति को गरमा दिया है। बस्तियों पर अस्तित्व को लेकर मंडरा रहे संकट को टालने के लिए राज्य सरकार ने तीसरी बार अध्यादेश लाने का काम किया है। अध्यादेश को लेकर एनजीटी के कड़े रुख ने कांग्रेस को भाजपा पर हमले के लिए सियासी हथियार थमाने का काम किया है ।
विपक्षी में बैठी कांग्रेस इस मुद्दे को तूल देने का काम कर रही है ताकि सत्ताधारी दल भाजपा को घेरा जा सके। लगभग 582 मलिन बस्तियों के बड़े वोट बैंक को लुभाने के लिए चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी के बड़े नेता सरकार को निशाने पर ले रहे हैं। इसकी वजह है अब तक 12 जिलों की यह बस्तियां बड़े वोट बैंक की शक्ल ले चुकी है।
इसलिए निकाय चुनाव के मौके पर हर बार बस्तियों का नियमितीकरण बड़ा मुद्दा बन जाता है। प्रदेश में साल 2017 के बाद बनी भाजपा की सरकार ने अब तक इन बस्तियों पर मंडरा रहे खतरे को रोकने के लिए तीन बार अध्यादेश लाने का काम किया है लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी इन बस्ती वासियों का पुनर्वास नहीं हो पाया है।
NGT ने नगर निकाय चुनाव से ठीक पहले तीसरी बार लाए गए अध्यादेश पर सवाल उठा दिए हैं। कांग्रेस इसी एनजीटी के आदेश का हवाला देते हुए निकाय चुनाव में भाजपा को निशाने पर ले रही है। खास तौर से 11 नगर निगम में कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बना रही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार को निशाने पर लेटे हुए बस्तियों की उपेक्षा करने का आरोप लगा चुके हैं।
वहीं पिछले निकाय चुनाव में कुल आठ नगर निगम में से भाजपा के कब्जे में 6 नगर निगम आए थे जबकि कांग्रेस को दो नगर निगम में ही सफलता मिल पाई थी। लेकिन इस बार कांग्रेस को उम्मीद है कि यह मुद्दा उसे नगर निगम में बड़ी जीत दिलाने में कारगर साबित होगा। देहरादून हरिद्वार रुड़की हल्द्वानी रुद्रपुर और काशीपुर के नगर निगम में इसलिए पार्टी बस्ती क्षेत्र में इस विषय को प्रमुखता से उठा रही है।
देहरादून जिले में ही बस्तियों में मतदाताओं की संख्या 60 से 70000 तक बताई जाती है । यानि इस बार निकाय चुनाव में यही मलिक बस्तियां विपक्ष के लिए बड़ा हथियार बन चुकी है और इसी सियासी हथियार का इस्तेमाल कर कांग्रेस बीजेपी की सरकार को घायल करना चाहती है मगर सवाल ये कि क्या वो इस सियासी हथियार का इस्तेमाल ठीक से कर भी पाएगी या धामी के पास इसकी कोई काट है।