जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहलगाम आतंकी हमले की कवरेज को लेकर एक प्रमुख मीडिया चैनल पर निशाना साधा है। उन्होंने इसे “गैर-जिम्मेदाराना और भड़काऊ रिपोर्टिंग” करार देते हुए पत्रकारिता की मर्यादा पर सवाल उठाए। उमर का कहना है कि ऐसे वक्त में मीडिया को लोगों को जोड़ने का काम करना चाहिए, न कि और ज्यादा डर फैलाने का।
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद जहां देशभर में शोक और आक्रोश है, वहीं एक नई बहस भी छिड़ गई है—मीडिया की भूमिका को लेकर। इस हमले की रिपोर्टिंग के तरीके पर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक प्रमुख मीडिया चैनल को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वह लोगों में डर और नफरत फैलाने का काम कर रहा है, जो बिल्कुल निंदनीय है।
उमर अब्दुल्ला ने अपने सोशल मीडिया हैंडल और प्रेस बयान में कहा, “देश के सामने जब इस तरह की त्रासदी आती है, तो मीडिया की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। लेकिन कुछ चैनल सिर्फ टीआरपी के लिए सांप्रदायिक रंग और भड़काऊ शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं। क्या यह राष्ट्र की सेवा है या समाज को बांटने की कोशिश?”
उन्होंने कहा कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, लेकिन जब यह स्तंभ खुद कमजोर हो जाए या विकृत हो जाए, तो पूरे लोकतंत्र की नींव हिलने लगती है।
उमर अब्दुल्ला ने यह भी जोड़ा कि मीडिया को अपने रिपोर्टिंग स्टैंडर्ड्स की समीक्षा करनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हर हमले के बाद किसी खास समुदाय को टारगेट करना या बिना तथ्यों के खबरें चलाना बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है। इससे घाटी की स्थिति और बिगड़ सकती है।”
उनका कहना था कि पहलगाम में जो हुआ, वह एक राष्ट्रीय त्रासदी है, और इसमें मीडिया का काम होना चाहिए था—सच्चाई दिखाना, पीड़ितों की आवाज़ को मंच देना और जिम्मेदार रिपोर्टिंग करना।
पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले के बाद घाटी में तनावपूर्ण स्थिति है। सरकार ने सुरक्षा बढ़ा दी है और स्थानीय लोगों में दहशत का माहौल है। ऐसे में मीडिया की भूमिका बेहद संवेदनशील हो जाती है। उमर अब्दुल्ला ने इसी संवेदनशीलता की याद दिलाते हुए कहा, “मीडिया को आग लगाने वाला नहीं, शांति का संदेश फैलाने वाला माध्यम बनना चाहिए।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, और न ही उसे किसी एक क्षेत्र या विचारधारा से जोड़ना चाहिए। “हम सब को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा—सरकार, जनता और मीडिया एकजुट होकर,” उन्होंने कहा।
उमर अब्दुल्ला के बयान के बाद कई राजनेताओं और सामाजिक संगठनों ने भी मीडिया चैनलों से जिम्मेदार रिपोर्टिंग की अपील की। विपक्षी नेताओं ने कहा कि आतंकवाद पर राजनीति और भय का व्यापार रोकना जरूरी है।
वहीं, घाटी के स्थानीय नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी उमर अब्दुल्ला की बात का समर्थन करते हुए कहा कि “मीडिया का रवैया घाटी के युवाओं में और ज्यादा अलगाव की भावना पैदा कर सकता है, जो बेहद खतरनाक है।”
आज जब देश आतंक के खिलाफ लड़ रहा है, तो हर संस्था की भूमिका अहम हो जाती है। मीडिया को चाहिए कि वह समाज में डर नहीं, भरोसा पैदा करे। उमर अब्दुल्ला का यह बयान एक जरूरी चेतावनी है कि अगर मीडिया अपनी दिशा नहीं सुधारेगा, तो वह लोकतंत्र को ही कमजोर कर देगा। यह समय है सच्चाई और संवेदनशीलता के साथ खड़े होने का—not sensationalism का।