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उत्तराखंड में निकाय चुनावः आयोग की सख्ती, दावेदारों की दावेदारी फंसी !

राज्य में निकाय चुनाव को लेकर सियासत जहां तेज हो गई है ...तो वहीं दूसरी तरफ प्रत्याशियों की टेंशन ज्यादा बढ़ने लगी है । एक तरफ तो पार्टी में टिकट पाने के लिए सेटिंग गेटिंग शुरू हो चुकी है तो दूसरी तरफ आयोग ने चुनाव के लिए जो नियम जारी किए हैं उसे प्रत्याशियों के दिल की धड़कन ज्यादा बढ़ने लगी है।

By HO BUREAU 

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देहरादून। राज्य में निकाय चुनाव को लेकर सियासत जहां तेज हो गई है …तो वहीं दूसरी तरफ प्रत्याशियों की टेंशन ज्यादा बढ़ने लगी है । एक तरफ तो पार्टी में टिकट पाने के लिए सेटिंग गेटिंग शुरू हो चुकी है तो दूसरी तरफ आयोग ने चुनाव के लिए जो नियम जारी किए हैं उसे प्रत्याशियों के दिल की धड़कन ज्यादा बढ़ने लगी है।

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इस बार निर्वाचन आयोग ने जहां राहत देते हुए चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाने की सूची जारी की है तो वहीं दूसरी तरफ लापरवाही बरतने वाले प्रत्याशियों पर लगाम लगाने का भी प्रयास किया है। खर्च की सीमा में अब मेयर प्रत्याशी 16 लाख से बढ़कर 30 लाख रु तक खर्च कर सकते हैं। इसी तरह पार्षद और सदस्य का भी चुनावी खर्च बढ़ गया है। लेकिन अगर किसी संभावित प्रत्याशी ने निकायों से संबंधित बिल या टैक्स जमा नहीं किया है।

निगम निकाय चुनाव के दावेदारों इस खबर को ध्यान से सुन ले क्योंकि अगर किसी भी संभावित प्रत्याशी ने निकायों से जुड़े किसी भी बिल या टैक्स को जमा नहीं किया है.. तो वह इस बार चुनाव नहीं लड़ पाएगा।  जी निकाय चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से की गई सख्ती से अब प्रत्याशियों की टेंशन बढ़ने लगी है। राज्य निर्वाचन आयोग ने इस बार चुनाव को लेकर कुछ छूट तो कुछ सख्ती बरती है। सख्ती में संदेश साफ है कि बिल का भुगतान नहीं तो चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं।

ऐसे में खबर है कि समय रहते हुए सभी संभावित प्रत्याशी आयोग की गाइडलाइन पढ़ते हुए अपने टैक्स और बिल जमा करने में जुट गए हैं। निकाय चुनाव के तारीखों का ऐलान जल्द ही हो सकता है इसलिए समय रहते हुए सभी प्रत्याशी अपने-अपनी दावेदारी पुख्ता करना चाहते हैं ।  निर्वाचन आयोग की तरफ से जो गाइडलाइन दी गई है उसी देंखे और समझे तो दावेदार अपने प्रत्याशी कर रहे हैं पहले पार्टी फार्म पर अपना टिकट कंफर्म करना चाहते हैं। भाजपा हो या कांग्रेस चुनाव को लेकर अपनी जीत के दावे जरूर कर रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के माने तो सरकार ने जो आरक्षण जारी किया है वह सही नहीं है बल्कि कुछ जगहों पर सरकार इस आरक्षण के चलते स्वयं अपनी पार्टी को मुसीबत में डाल चुकी है। निर्वाचन आयोग की सख्ती और प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या पर पार्टी भी मंथन कर रही है इसीलिए दोनों ही दल अभी चुनावी तैयारी पुख्ता होने की बात तो कर रहे है लेकिन तारीखों पर भी असमंजस दिखा रहे है।

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उत्तराखंड में आगामी 25 दिसंबर की तारीख महत्वपूर्ण होने वाली है क्योंकि राज्य सरकार की तरफ से जो 25 दिसंबर तक का समय निकाय चुनाव की तारीखों को घोषित करने के लिए मांगा गया था वह भी नजदीक आ चुका है ऐसे में 1 साल से निकाय चुनाव न होना जहां सरकार की फजीहत करवा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ निकाय चुनाव लड़ने का सपना देख रहे प्रत्याशियों का बीपी भी बढ़ा रहा है।

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