आज (8 मई) विश्व थैलेसीमिया दिवस है। बच्चों में लगातार थैलेसीमिया की बढ़ रही बीमारी चिंता का विषय है।
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नई दिल्ली। आज (8 मई) विश्व थैलेसीमिया दिवस है। बच्चों में लगातार थैलेसीमिया की बढ़ रही बीमारी चिंता का विषय है। जो भी बच्चे थैलेसीमिया की बीमारी से ग्रसित होते हैं, उनकी हालत दयनीय हो जाती है।
वंशानुगत है यह बीमारी
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट के अनुसार, थैलेसीमिया रोगी के इलाज पर 50 साल में कम से कम 1 करोड़ रुपये तक खर्च आ जाता है। डॉ. मनीष सिंह गुर्जर बताते हैं कि यह बीमारी वंशानुगत है।
ऐसे में शिशु से लेकर किशोरावस्था तक के बच्चे इससे सबसे ज्यादा ग्रसित होते हैं। इसलिए इस आधुनिक युग में यह प्रावधान किया गया है कि विवाह के समय जन्म कुंडली के अलावा मेडिकल हिस्ट्री का भी मिलान करना चाहिए, ताकि ऐसी भयंकर बीमारी से बचा जा सके।
इलाज ही एकमात्र उपाय
बताया कि जो बच्चे पहले ही इस बीमारी से ग्रसित हैं, उनके लिए इलाज ही एकमात्र उपाय है। यदि हम एक ही विधि को अपनाकर इसका इलाज करना चाहते हैं तो हमें ज्यादा परेशान होना पड़ सकता है।
लेकिन यदि हम सभी पद्धति का समावेश करके इस बीमारी के इलाज के लिए कोशिश करते हैं तो हमें भविष्य में और भी अच्छे रिजल्ट प्राप्त हो सकते हैं। भारत में बोन मेरो ट्रांसप्लांट बहुत महंगा है तो सामान्य और मिडिल क्लास के व्यक्ति इसे नहीं अपना पाते हैं और ब्लड ट्रांसफ्यूजन ही उनके लिए आखिरी उपाय रहता है।