ऑल पार्टी मीटिंग के बाद AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार को घेरते हुए कहा कि जनता के मुद्दों पर केवल चर्चा नहीं, ईमानदार कार्रवाई भी होनी चाहिए। उन्होंने विपक्ष की भूमिका को जरूरी बताते हुए लोकतंत्र को मजबूत करने की बात कही। साथ ही केंद्र से अपील की कि अल्पसंख्यकों और हाशिये पर खड़े समुदायों की भी सुनी जाए।
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ऑल पार्टी मीटिंग के समापन के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने मीडिया से बात करते हुए सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए और कहा कि ऐसी बैठकें तभी सार्थक होंगी जब सरकार हर आवाज़ को ईमानदारी से सुने और उस पर अमल करे। उन्होंने कहा कि केवल बड़ी पार्टियों की बातों को महत्व देना और छोटे दलों की उपेक्षा करना लोकतंत्र के साथ अन्याय है।
ओवैसी ने साफ शब्दों में कहा, “हमें इस बैठक में बोलने का मौका मिला, लेकिन क्या सरकार हमारे सुझावों को अमल में लाएगी? यह सवाल हमेशा बना रहता है।” उन्होंने विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़े तबकों से जुड़े मुद्दों पर सरकार का ध्यान दिलाया और मांग की कि नीति निर्धारण में इन वर्गों को भी समान भागीदारी मिले।
AIMIM प्रमुख ने कहा कि मौजूदा दौर में विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिशें हो रही हैं, जो लोकतंत्र के लिए घातक है। “अगर विपक्ष को संसद में बोलने नहीं दिया जाएगा, मीडिया में उसकी बातों को नजरअंदाज किया जाएगा, और एजेंसियों के जरिए डराया जाएगा, तो यह देश किस दिशा में जाएगा?”, ओवैसी ने सवाल उठाया।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार को सच में देश की चिंता है, तो उसे जनसंख्या के हर वर्ग को शामिल करके नीतियों का निर्माण करना चाहिए। ऑल पार्टी मीटिंग जैसे मंच जनता की आवाज को सुनने का अवसर होते हैं, ना कि केवल राजनीतिक औपचारिकता।
हाल में हुए जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले को लेकर भी ओवैसी ने अपनी चिंता जताई और कहा कि आतंकवाद के खिलाफ देश को एकजुट रहना चाहिए। उन्होंने सरकार से पूछा कि बार-बार सुरक्षा में चूक क्यों हो रही है और उस पर कोई स्पष्ट जवाब क्यों नहीं आता। “सिर्फ पाकिस्तान को दोष देने से आतंकवाद नहीं रुकेगा, ज़रूरत है ग्राउंड पर मजबूत एक्शन की,” ओवैसी ने कहा।
यह ऑल पार्टी मीटिंग आगामी संसद सत्र से पहले बुलाई गई थी, जिसमें सरकार ने सभी दलों से सहयोग की अपील की। लेकिन ओवैसी ने कहा कि सरकार केवल सहमति लेने के नाम पर मीटिंग बुलाती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर फीडबैक को अनदेखा कर देती है। उन्होंने मांग की कि संसद सत्र के दौरान महंगाई, बेरोजगारी, जातिगत जनगणना, और अल्पसंख्यकों के अधिकार जैसे मुद्दों पर खुली बहस होनी चाहिए।