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“AI की चाल में फंसे पाकिस्तान के डिप्टी पीएम: संसद में पढ़ी फर्जी हेडलाइन”

पाकिस्तान के डिप्टी प्रधानमंत्री ने हाल ही में संसद में एक अखबार की हेडलाइन का हवाला दिया जो दरअसल एक एआई द्वारा बनाई गई नकली खबर थी। यह मामला तब सामने आया जब विशेषज्ञों ने उस खबर की सत्यता की जांच की और उसे पूरी तरह फर्जी पाया। इस घटना ने पाकिस्तान की राजनीति में एआई और फेक न्यूज को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है। भारत में भी यह मुद्दा चर्चा का विषय बन गया है, खासकर मीडिया की विश्वसनीयता के नजरिए से।

By bishanpreet345@gmail.com 

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पाकिस्तान की संसद में हाल ही में एक ऐसा वाकया हुआ जिसने पूरे देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी राजनीतिक और तकनीकी जगत को झकझोर कर रख दिया। देश के डिप्टी प्रधानमंत्री, जो एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता माने जाते हैं, ने संसद के भीतर एक प्रमुख अखबार की हेडलाइन का हवाला देते हुए एक बड़ा बयान दिया। लेकिन कुछ ही घंटों में खुलासा हुआ कि वह हेडलाइन तो किसी वास्तविक समाचार पत्र में छपी थी और ही उसकी कोई प्रमाणिकता थी — वह पूरी तरह एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) द्वारा बनाई गई फर्जी खबर थी।

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डिप्टी प्रधानमंत्री ने जिस खबर का हवाला दिया, उसमें भारत को लेकर कुछ संवेदनशील टिप्पणियां थीं। उन्होंने इसे ‘अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सच्चाई’ बताते हुए भारत की नीतियों की आलोचना की। हालांकि, स्वतंत्र मीडिया संगठनों और फैक्ट-चेकिंग एजेंसियों ने जब उस अखबार और खबर की पड़ताल की, तो पता चला कि ऐसा कोई लेख कभी प्रकाशित ही नहीं हुआ। बल्कि, वह हेडलाइन एक जनरेटिव एआई टूल द्वारा बनाई गई थी जो नकली अखबारों और हेडलाइनों को वास्तविक जैसा दिखाने की तकनीक से चलता है।

यह घटना केवल पाकिस्तान की राजनीतिक ईमानदारी पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस तरह से बिना सत्यापन के एआई कंटेंट पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एआई की शक्ति का उपयोग करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन उसका उपयोग तब तक ही सही है जब तक वह सत्य और तथ्यात्मक जानकारी पर आधारित हो। संसद जैसे उच्च मंच पर फर्जी जानकारी का उपयोग करना केवल भ्रामक होता है, बल्कि यह राष्ट्रीय छवि और वैश्विक भरोसे पर भी असर डालता है।

भारत में इस घटना को लेकर कई मीडिया चैनलों और राजनीतिक विशेषज्ञों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भारत की प्रतिष्ठित मीडिया चैनल्स ने यह सवाल उठाया है कि क्या पड़ोसी देश की सरकार अब एआई जनरेटेड झूठे तथ्यों पर भरोसा कर रही है? यह केवल पाकिस्तान की स्थिति को हास्यास्पद बनाता है, बल्कि दक्षिण एशिया में राजनीतिक विमर्श की गंभीरता को भी कमजोर करता है।

इस घटना ने यह भी उजागर किया कि फेक न्यूज के बढ़ते प्रसार और एआई टूल्स की उपलब्धता से केवल आम नागरिक, बल्कि बड़े-बड़े नेता भी भ्रमित हो सकते हैं। इसे एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए कि चाहे वह मीडिया हो या राजनीति, बिना जांच-पड़ताल के किसी भी डिजिटल सामग्री का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

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अब सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान की सरकार इस घटना से सबक लेगी? क्या एआई आधारित कंटेंट के लिए कोई नीति या निगरानी प्रणाली बनेगी? क्या अन्य देश भी इससे प्रेरणा लेकर अपने-अपने लोकतांत्रिक संस्थानों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देंगे?

यह घटना स्पष्ट करती है कि हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं जहां सूचना और गलत सूचना के बीच की दीवार बेहद पतली हो गई है। ऐसे में हर व्यक्ति, खासकर जब वह एक सार्वजनिक पद पर हो, उसे अत्यधिक सतर्कता और ज़िम्मेदारी के साथ जानकारी साझा करनी चाहिए।

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