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उत्तराखंडः नामांकन के बाद निकाय चुनाव में प्रत्याशियों की तस्वीर हुई साफ, 100 नगर निकायों में 5399 प्रत्याशी आजमाएंगे अपनी किस्मत

नामांकन के बाद निकाय चुनाव में प्रत्याशियों की तस्वीर साफ हो गई। 100 नगर निकायों में 5399 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाएंगे।  47 प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए, जबकि 782 ने अपने नामांकन वापस लिए। 11 नगर निगम में 25 प्रत्याशीयो ने मेयर पद के लिए किए अपने नामांकन वापस किए।

By HO BUREAU 

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देहरादून। नामांकन के बाद निकाय चुनाव में प्रत्याशियों की तस्वीर साफ हो गई। 100 नगर निकायों में 5399 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाएंगे।  47 प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए, जबकि 782 ने अपने नामांकन वापस लिए। 11 नगर निगम में 25 प्रत्याशीयो ने मेयर पद के लिए किए अपने नामांकन वापस किए।

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नगर पालिकाओं में 51 और नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए 58 प्रत्याशीयो ने किए नाम वापस। नगर निगम में पार्षद पद के लिए 217 पालिका में सदस्य पद के लिए 218 और पंचायत में सदस्य पद के लिए 214 प्रत्याशियों ने अपने नाम वापस लिए। राज्य के एक नगर पालिका और दो नगर पंचायत के अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित हुए।

नगर निगम में 14 पार्षद नगर पालिका में 20 और नगर पंचायत में 10 सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हुए। 11 नगर निगम में मेयर पद पर 72 और पार्षद पद पर 2009 प्रत्याशी आजमाएंगे अपनी किस्मत। नगर पालिका में अध्यक्ष पद पर 211 और सदस्य पद पर 1596 प्रत्याशी चुनाव मैदान में डटे हुए। नगर पंचायत में अध्यक्ष पद पर 231 और सदस्य पद पर 1280 डटे हुए। देहरादून 10 ऋषिकेश में चार हरिद्वार में पांच रुड़की में 10 श्रीनगर में पांच कोटद्वार में 6 हल्द्वानी में 10 काशीपुर में 7 अल्मोड़ा में 3 पिथौरागढ़ में 8 और रुद्रपुर में चार प्रत्याशी मेयर पद पर आजमा रहे अपनी किस्मत।

कांग्रेस की माने तो सत्ताधारी दल भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस पार्टी मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतरी है और कांग्रेस पार्टी का एक-एक प्रत्याशी भाजपा के प्रत्याशियों पर भारी पड़ता हुआ नजर आ रहा है। वहीं भाजपा नेता की माने तो अगर सभी पार्टी के बागी नेता समय से अपना नाम वापस नहीं लेते हैं और पार्टी प्रत्याशी के हित में समर्थन नहीं करते हैं तो फिर उनके खिलाफ अनुशासन का डंडा चलेगा और उसके लिए संगठन तैयार है।

निकाय चुनाव में डैमेज कंट्रोल करने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अथक प्रयास किए थे  लेकिन उसमें सफलता 50-50 ही मिल पाई है। जबकि चुनौती अभी भी पहाड़ी क्षेत्र की निकायों में ज्यादा है, क्योंकि प्रत्याशी ज्यादा होने से राष्ट्रीय पार्टियों के चुनावी समीकरण बिगाड़ गए है।

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