न्यायपालिका पर हालिया सियासी बयानबाज़ी के बीच शीर्ष सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट कहा है कि केंद्र का न्यायपालिका के प्रति सम्मान ‘अटूट’ है। उन्होंने जोर दिया कि सरकार और अदालतों के बीच कार्य‑क्षेत्र संबंधी मतभेद “संवैधानिक संवाद” के ज़रिए सुलझाए जाएंगे, न कि सार्वजनिक टकराव से। यह बयान न्यायाधीशों पर व्यक्तिगत हमलों और कॉलेजियम व्यवस्था पर उठे सवालों के बाद आया है।
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कुछ राजनीतिक नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों पर बयान देते हुए न्यायपालिका पर “सरकार के कामकाज में दखल” का आरोप लगाया।
जवाब में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों ने सार्वजनिक मंचों से “कुर्सी‑टिप्पणियों” पर नाराज़गी जताई।
कॉलेजियम की सिफ़ारिशों और नियुक्तियों में देर पर अदालत व सरकार के बीच पत्राचार भी सुर्खियों में रहा।
“सरकार भारत की न्यायपालिका को लोकतंत्र का मूल स्तंभ मानती है। संवैधानिक संतुलन बनाए रखना हमारी साझी ज़िम्मेदारी है। कोई भी असहमति आंतरिक संस्थागत तंत्र से सुलझाई जाएगी।”
सूत्रों ने यह भी जोड़ा कि—
कोर्ट की आलोचना “निजी हमले” के बजाय सुधारवादी सुझाव के रूप में होनी चाहिए।
न्यायाधीशों को सुरक्षा और गरिमा देने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
सूत्रों के अनुसार, “केंद्र कॉलेजियम फ़ाइलों पर तय समयसीमा के भीतर प्रतिक्रिया देने का प्रयास कर रहा है।”
नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) पर दोबारा सर्वानुमति बनाने के संकेतों का भी इनकार नहीं किया गया, पर “सर्वदलीय सहमति” को शर्त बताया गया।
सरकार ने बताया कि ई‑कोर्ट्स परियोजना के अगले चरण में:
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस ड्राफ़्ट ऑर्डर‑एड
निचली अदालतों में पेपरलेस फ़ाइल
वन‑नेशन‑वन‑पोर्टल से केस ट्रैकिंग—
की धनराशि बजट‑2024 में आवंटित की गई है। इससे अदालती बोझ कम होगा और पारदर्शिता बढ़ेगी।
कांग्रेस और कई क्षेत्रीय दलों ने आरोप लगाया कि सरकार न्यायपालिका को “हितकारी निर्णय” देने के लिए अनकहे दबाव में रखती है। वे NJAC की पुनरावृत्ति को “न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला” बताते हैं।
कुछ पूर्व जज मानते हैं कि न्यायपालिका‑कार्यपालिका संवाद “मृदु लेकिन स्पष्ट” होना चाहिए; सार्वजनिक मंचों से बयान देने से संस्थागत गरिमा प्रभावित होती है।
दूसरी राय यह कि लोकतंत्र में पारदर्शिता के लिए अदालतें भी आलोचना से परे नहीं; बशर्ते भाषा सम्मानजनक हो।
सरकारी सूत्रों ने संकेत दिया—
केंद्र‑कोर्ट समन्वय तंत्र को औपचारिक रूप दिया जा सकता है, जहाँ नियुक्ति, फ़ंड और इंफ़्रास्ट्रक्चर मुद्दों पर नियमित बैठकें हों।
प्रतिष्ठित केसों पर बयानबाज़ी के लिए मंत्री‑न्यायपालिका ‘आचार संहिता’ की संभावना भी टटोल रहे हैं।