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वक्फ बोर्ड एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश: संवैधानिकता पर गहराया विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्ड एक्ट से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अंतरिम आदेश जारी किया है, जिससे इस कानून की वैधता को लेकर बहस और तेज़ हो गई है। कोर्ट ने कहा कि इस कानून के कुछ प्रावधानों पर गंभीर सवाल उठते हैं, जिन्हें पूरी तरह से जांचने की आवश्यकता है। इस आदेश के बाद धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार, और संविधान की धारा 14 और 25 पर भी बहस छिड़ गई है।

By bishanpreet345@gmail.com 

Updated Date

वक्फ पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश: क्या कमजोर हो रहा है वक्फ बोर्ड एक्ट?

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भारत में वक्फ संपत्तियों को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। इस बार मुद्दा है सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ एक्ट 1995 पर दिया गया एक अंतरिम आदेश, जो न केवल इस कानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाता है, बल्कि इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों को भी उजागर करता है।

क्या है वक्फ बोर्ड एक्ट?
Waqf Act 1995 एक केंद्रीय कानून है, जिसके तहत मुस्लिम समुदाय द्वारा दी गई धार्मिक संपत्तियाँ, जैसे मस्जिदें, कब्रिस्तान, मदरसे, और अन्य धार्मिक संस्थान वक्फ बोर्ड के अधीन आते हैं। इस कानून के तहत वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड, प्रबंधन और संरक्षण किया जाता है।


सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश क्या कहता है?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए वक्फ एक्ट की कुछ धाराओं पर रोक लगाने से इनकार किया, लेकिन यह भी कहा कि इस कानून की संवैधानिक वैधता की गहन समीक्षा जरूरी है। कोर्ट ने साफ किया कि वह यह तय करेगा कि क्या यह कानून अन्य धर्मों के साथ भेदभाव करता है और क्या यह भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के खिलाफ है।


संविधान के कौन-कौन से अनुच्छेद आए सवालों में?

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  • Article 14 – समानता का अधिकार

  • Article 25 – धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

  • Article 26 – धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार

इन अनुच्छेदों के तहत याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वक्फ एक्ट केवल मुस्लिम समुदाय के लिए एक अलग कानूनी ढांचा बनाता है, जो बाकी धर्मों के साथ भेदभाव करता है।


ओवैसी और मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस कानून को “संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ” बताते हुए कहा कि अगर इसमें संशोधन जरूरी हो तो उसे मुस्लिम समुदाय से परामर्श लेकर किया जाना चाहिए। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई सामाजिक संगठनों ने भी यह चिंता जताई कि इस कानून में बदलाव से धार्मिक अधिकारों पर असर पड़ सकता है।

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विपक्ष और याचिकाकर्ताओं की दलीलें
वक्फ एक्ट के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया है कि इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड को अत्यधिक शक्तियाँ दी गई हैं, जिससे आम नागरिकों की संपत्ति पर भी दावा किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून “सरकारी भूमि” या निजी संपत्तियों को भी वक्फ संपत्ति घोषित करने का दुरुपयोग करता है।


क्या है वक्फ संपत्तियों से जुड़ा विवाद?
भारत में करीब 6 लाख एकड़ से ज़्यादा वक्फ संपत्ति है, जिसकी कीमत अरबों रुपये में आंकी जाती है। लेकिन इनमें से बड़ी संख्या में संपत्तियाँ अवैध कब्ज़ों, प्रबंधन में गड़बड़ी, और कानूनी विवादों में उलझी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इन विवादों को सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।


सरकार का क्या रुख है?
अब तक केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट स्थिति नहीं ली है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान सरकार से जवाब मांगा गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार संविधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए कानून में संशोधन करने की सोच सकती है।


भविष्य की दिशा और संभावित असर
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने तक वक्फ एक्ट के भविष्य को लेकर असमंजस बना रहेगा। अगर कोर्ट इस एक्ट को असंवैधानिक करार देता है, तो देशभर में धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन ढांचे में बड़ा बदलाव संभव है। वहीं अगर यह एक्ट वैध ठहराया जाता है, तो इसकी निगरानी और पारदर्शिता के लिए नए दिशा-निर्देश आ सकते हैं।


राजनीतिक नजरिया
चुनावी सालों में वक्फ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कोर्ट का आदेश अक्सर राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करता है। इस मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच ध्रुवीकरण की स्थिति बन सकती है, जिससे सामाजिक माहौल पर भी असर पड़ सकता है।

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