AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में आयोजित “वक़्फ़ बचाओ राष्ट्रीय सम्मेलन” में भाग लेकर केंद्र सरकार की वक़्फ़ क़ानून समीक्षा प्रक्रिया की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि वक़्फ़ संपत्तियाँ मुसलमानों की सामाजिक‑धार्मिक धरोहर हैं, जिन्हें किसी भी कीमत पर निजी या सरकारी हस्तांतरण से बचाना होगा। ओवैसी ने कानूनी मोर्चे के साथ‑साथ देशभर में जन‑जागरण अभियान की घोषणा की।
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हैदराबाद के बर्ला विज्ञान भवन में जुटे—
ऑल इंडिया मजलिस‑ए‑इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) प्रतिनिधि,
विविध वक़्फ़ बोर्ड सदस्य,
मुस्लिम विधि विशेषज्ञ,
और सामुदायिक संस्थाएँ—
का मक़सद था वक़्फ़ अधिनियम 1995 में प्रस्तावित संशोधनों पर समन्वित रणनीति बनाना।
“वक़्फ़ बोर्ड महज़ प्रशासनिक निकाय नहीं, यह हमारी ग़रीब‑नवाज़ इमारतों, मज़ारों, दरगाहों, मदरसों और अनाथालयों की रक्षक इकाई है। इस पर कोई ‘कॉर्पोरेट मॉडल’ थोपना मुसलमानों की सामाजिक सुरक्षा पर हमला है।”
उन्होंने तीन प्रमुख चिंताएँ गिनाईं:
धारा 52 में संशोधन— वक़्फ़ संपत्ति के “अधिग्रहण” को आसान बनाना।
राज्य वक़्फ़ बोर्ड शक्तियों की कटौती— निर्णय का अधिकार कलेक्टर या एसडीएम को देना।
ट्रिब्यूनल प्रणाली का संदर्भ— न्यायिक अपीलों को लंबा करना, जिससे क़ब्ज़े वैध हो जाएँ।
कदम | विवरण | समय‑सीमा |
---|---|---|
1. लीगल टास्क‑फोर्स | पूर्व हाईकोर्ट जजों व सीनियर एडवोकेट्स की टीम | 1 महीना |
2. वक़्फ़ डिजिटल मैपिंग | ड्रोन/जियो‑टैग के ज़रिए देश‑भर की संपत्तियों का पोर्टल | 6 महीने |
3. राज्य‑स्तरीय जनसभा | 14 प्रमुख शहरों में “वक़्फ़ अधिकार यात्रा” | 3 महीने |
4. संसद लॉबीइंग | सांसदों को श्वेत‑पत्र सौंपना, संयुक्त संसदीय समिति की माँग | शीतकालीन सत्र |
सम्मेलन में पहली बार महिला प्रतिनिधियों ने वक़्फ़ शिक्षण संस्थानों की स्थिति पर पेपर पेश किया। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित संशोधन से महिला मदरसा छात्राओं तथा सिलाई‑केंद्रों को मिलने वाला अनुदान प्रभावित होगा। ओवैसी ने मंच से वादा किया कि “महिला नेतृत्व” को कार्यसमिति में 33 % आरक्षण दिया जाएगा।
कुछ प्रगतिशील वक्ताओं ने वक़्फ़ बोर्डों की भीतरी पारदर्शिता पर प्रश्न उठाए। जवाब में ओवैसी ने माना कि “भ्रष्टाचार और दुहरा लीज़” एक सच्चाई है, पर इसका हल अधिग्रहण नहीं बल्कि E‑ऑक्शन पारदर्शी प्लेटफ़ॉर्म है।
विश्लेषकों के मुताबिक AIMIM इस मुद्दे को—
2024 लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं की लामबंदी,
और विपक्षी गठबंधन में मोलभाव की ताक़त बढ़ाने के लिए उपयोग कर सकती है।
हालाँकि कांग्रेस व वामपंथी दलों ने भी संशोधन के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है, जिससे issue‑based alliance की संभावना खुली है।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधिकारियों का तर्क है कि संशोधन से “वक़्फ़ प्रॉपर्टी का मॉडर्न मैनेजमेंट” और रुकी परिसंपत्तियों का व्यावसायिक दोहन संभव होगा। पर सम्मेलन ने इसे “सैंध लगाकर विनिवेश” करार दिया।
“वक़्फ़ बचाओ सम्मेलन” ने स्पष्ट कर दिया कि मुसलमानों के लिए यह सिर्फ कानूनी लड़ाई नहीं, सांस्कृतिक अस्मिता का विषय है। असदुद्दीन ओवैसी का आक्रामक रुख केंद्र के सामने चुनौती पेश करता है—क्या सरकार बहुपक्षीय संवाद करेगी या संसद में संख्याबल के भरोसे संशोधन पारित करेगी? जवाब आने वाले सत्र में मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि वक़्फ़ प्रोटेक्शन बनाम प्रॉपर्टी रिफॉर्म बहस अब और तेज होगी।