राहुल गांधी द्वारा विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर पर उठाए गए सवालों ने देश की विदेश नीति और राजनयिक रणनीतियों को लेकर बहस को तेज कर दिया है। जयशंकर का जवाब तथ्यों और अनुभवों पर आधारित था, जिससे सरकार की विदेश नीति को लेकर स्पष्टता सामने आई। इस लेख में हम पूरे विवाद, राहुल के आरोप और जयशंकर की प्रतिक्रिया का विश्लेषण करेंगे।
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भारत की राजनीति में बहस और आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह विषय विदेश नीति जैसा संवेदनशील मुद्दा हो, तो मामला और भी गंभीर हो जाता है। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर पर तीखा हमला करते हुए भारत की विदेश नीति पर सवाल उठाए। राहुल गांधी ने कहा कि भारत की विदेश नीति “कमज़ोर और दिशाहीन” हो चुकी है और सरकार “चीन और अमेरिका जैसे देशों के सामने झुक रही है।”
राहुल गांधी के इस बयान के बाद देश की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इन आरोपों का करारा जवाब देते हुए तथ्यों और डिप्लोमैटिक अनुभव के आधार पर राहुल को घेरा। जयशंकर ने साफ शब्दों में कहा कि, “हमारी विदेश नीति मजबूती, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। अगर राहुल गांधी को विदेश नीति की इतनी समझ होती, तो शायद वे ऐसे गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देते।”
राहुल गांधी का सवाल – क्या सही, क्या रणनीतिक?
राहुल गांधी ने संसद में और मीडिया के सामने सरकार की विदेश नीति पर कई सवाल उठाए:
चीन के साथ सीमा विवाद पर सरकार की चुप्पी
अमेरिका और रूस के साथ संतुलन न बना पाने का आरोप
पड़ोसी देशों के साथ संबंधों की बिगड़ती स्थिति
वैश्विक मंचों पर भारत की घटती भूमिका
इन सभी मुद्दों को उन्होंने भारत की “असफल विदेश नीति” के प्रमाण के तौर पर पेश किया।
जयशंकर का जवाब – तथ्य, अनुभव और रणनीति
डॉ. जयशंकर ने इन सभी आरोपों का विस्तार से जवाब दिया और कहा कि विदेश नीति सिर्फ नारेबाजी से नहीं चलती, इसके लिए वास्तविक अनुभव, वैश्विक समझ और देशहित में संतुलन बनाए रखना जरूरी होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि, “जो लोग संसद के बाहर बैठकर विदेश नीति पर भाषण देते हैं, उन्हें ज़मीनी सच्चाई की जानकारी नहीं होती। भारत आज वैश्विक मंचों पर एक मजबूत आवाज बन चुका है। चाहे वो क्वाड की बैठकों की बात हो या रूस-यूक्रेन संकट में संतुलन की भूमिका – भारत को आज सुना और समझा जाता है।”
भारत की विदेश नीति – आंकड़ों की नजर से
चीन के साथ सीमा विवाद के बावजूद भारत ने LAC पर बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखी और ऊर्जा जरूरतों को प्राथमिकता दी।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ सहयोग में भारत ने क्वाड के ज़रिए बड़ा रोल निभाया है।
नीति आयोग और विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत की वैश्विक साख में इजाफा हुआ है।
राहुल बनाम जयशंकर – असली मुद्दा क्या है?
इस बहस के पीछे कई राजनीतिक कारण भी हैं। राहुल गांधी 2024 के आम चुनावों से पहले सरकार को हर मोर्चे पर घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। दूसरी ओर, डॉ. एस. जयशंकर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति का चेहरा माना जाता है। ऐसे में राहुल के सवालों का सीधा अर्थ केवल विदेश नीति पर सवाल नहीं बल्कि सरकार की छवि पर वार करना भी है।
जनता को क्या जानना चाहिए?
विदेश नीति आम नागरिकों के लिए दूर की बात लग सकती है, लेकिन इसका सीधा असर देश की सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और वैश्विक पहचान पर पड़ता है। राहुल गांधी द्वारा उठाए गए सवाल लोकतंत्र में स्वस्थ बहस का हिस्सा हैं, लेकिन जब विदेश नीति जैसा संवेदनशील विषय हो, तो तथ्यों और समझदारी के साथ बात करनी जरूरी है।
डॉ. जयशंकर ने अपने जवाब में एक महत्वपूर्ण बात कही – “देश की विदेश नीति को लेकर भ्रम फैलाना और सैनिकों के बलिदान को नजरअंदाज करना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।”