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रामबन तबाही पर उमर अब्दुल्ला का बयान: “भूस्खलन को प्राकृतिक आपदा कह कर छोड़ना अन्याय, लचर योजनाओं से बढ़ी त्रासदी”

जम्मू–कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रामबन ज़िले में भारी भूस्खलन से हुई तबाही पर गहरा शोक जताते हुए कहा कि इसे महज़ प्राकृतिक आपदा कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया कि अवैज्ञानिक कटिंग, कमजोर ड्रेनेज और ढीली निगरानी ने नुकसान को कई गुना बढ़ा दिया। अब्दुल्ला ने केंद्र व उपराज्यपाल प्रशासन से त्वरित राहत‑पुनर्वास, हाईवे इंफ्रास्ट्रक्चर ऑडिट और दीर्घकालीन भू‑सुरक्षा उपायों की मांग की।

By bishanpreet345@gmail.com 

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1. पृष्ठभूमि: रामबन भूस्खलन क्यों सुर्खियों में?

रामबन‑बनिहाल खंड (NH‑44) पर पिछले हफ्ते हुए भूस्खलन ने हाईवे यातायात ठप, कई श्रमिकों की मौत, और सैकड़ों यात्रियों को फँसा दिया। स्लाइड ज़ोन पहले से “बहुत संवेदनशील” घोषित है, फिर भी चौड़ीकरण कार्य तेज रफ्तार ब्लास्टिंग के साथ जारी रहा।

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2. उमर अब्दुल्ला ने क्या कहा?

  • “यह रोक योग्य त्रासदी थी”— प्रेस बयान में अब्दुल्ला ने स्पष्ट कहा कि सतर्क खोदाई, रिटेनिंग वॉल, और रॉक बोल्टिंग समय पर की जाती तो जान और धन की क्षति टल सकती थी।

  • प्रशासनिक चूक— “बारिश का सीज़न शुरू होते ही ढलानों पर निगरानी टीम होनी चाहिए, पर स्थानीय कॉन्ट्रैक्टर और एजेंसियाँ ‘कास्ट‑इट‑फास्ट’ दृष्टिकोण से काम कर रहीं।”

  • भू‑सुरक्षा ऑडिट— सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित किसी राष्ट्रीय भू‑वैज्ञानिक संस्थान (IIT‑रूड़की/सीब्रिज) से विस्तृत निरीक्षण कराने की मांग।

  • राहत‑पुनर्वास पैकेज— मृतकों के परिजनों को ₹10 लाख, घायलों को बेहतर इलाज, और विस्थापित परिवारों के लिए स्थायी पुनर्वास ज़ोन।

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3. केंद्र सरकार की भूमिका पर टिप्पणी

अब्दुल्ला ने कहा, “केंद्र ने ‘आठ घंटे श्रीनगर‑जम्मू’ का लक्ष्य रखा—अच्छा है—लेकिन सुरक्षा प्रोटोकॉल की अनदेखी परियोजना को ख़तरा बना रही है। विकास और सुरक्षा साथ‑साथ चलें, वरना हाईवे ‘लाइफ़लाइन’ के बजाय ‘जोखिम‑लाइन’ बन जाएगा।”

4. नेशनल कॉन्फ़्रेंस का राहत अभियान

  • एनसी कार्यकर्ता स्लाइड ज़ोन में तैनात राहत शिविरों को सूखा राशन, तिरपाल, दवाएँ पहुँचा रहे हैं।

  • पार्टी ने हेल्पलाइन नंबर जारी किया, ताकि फँसे यात्रियों और स्थानीय ग्रामीणों को त्वरित सहायता मिल सके।

  • अब्दुल्ला ने अन्य दलों से आरोप‑प्रत्यारोप छोड़कर संयुक्त राहत कोष में योगदान की अपील की।

5. विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

भू‑वैज्ञानिकों के मुताबिक रामबन‑बनिहाल कटाव क्षेत्र में—

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  • भू‑रूपांतरण: चूना‑पत्थर की परत और स्लेट शेल मिश्रण, बारिश में बेहद फिसलनभरा।

  • शॉक ब्लास्टिंग: चौड़ीकरण परियोजना में भारी विस्फोटकों का उपयोग, ढलान को अस्थिर करता है।

  • ड्रेनेज की कमी: बारिश का पानी पकड़कर अनियंत्रित बहाव, जिससे धरती की परतें धँसती हैं।

उमर अब्दुल्ला ने इन्हीं वैज्ञानिक बिंदुओं को दोहराते हुए कहा कि “हजारों करोड़ के इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश के बावजूद सुरक्षा इंजीनियरिंग में कंजूसी नहीं होनी चाहिए।”

6. आगे का रास्ता—अब्दुल्ला की पाँच सिफ़ारिशें

  1. स्लाइड जॉन्स रियल‑टाइम मॉनिटरिंग— भूस्खलन सेंसर, डॉप्लर रडार, और ड्रोन सर्वे अनिवार्य।

  2. कॉन्ट्रैक्टर Liabilities— सुरक्षा दिशानिर्देश उल्लंघन पर ब्लैक‑लिस्टिंग और भारी जुर्माना।

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  3. स्थायी रिटेनिंग वास्तु— रॉक‑बोल्ट, शॉट‑क्रीट, रोप‑नेटिंग व्यापक रूप से लागू हों।

  4. पुनर्वास और इंश्योरेंस— घाटी‑निवासियों और हाइवे मजदूरों के लिए जोखिम बीमा।

  5. ब्लॉक ट्रेनिंग— BRO/बीकन इंजीनियरों को ग्लोबल लैंडस्लाइड मैनेजमेंट कोर्स की ट्रेनिंग।

7. राजनीतिक समीकरण

रामबन त्रासदी पर उमर अब्दुल्ला के मुखर बयान से—

  • विपक्ष सरकार पर दबाव बढ़ाएगा कि ‘डेवलपमेंट वर्सेस डिसास्टर’ का संतुलन बिठाए।

  • लोकसभा 2024 से पहले ‘पर्यावरणीय अनुशासन बनाम तेज़ इंफ्रास्ट्रक्चर’ बहस को धार मिलेगी।

8. निष्कर्ष

रामबन की तबाही ने फिर सावित किया कि पहाड़ी राज्यों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और पर्यावरणीय सुरक्षा को अलग नहीं किया जा सकता। उमर अब्दुल्ला का बयान केवल राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि सुरक्षा‑इंजीनियरिंग की अनदेखी पर एक चेतावनी है। अगर अनुशासित भू‑प्रबंधन अब भी प्राथमिकता नहीं बना, तो ऐसी त्रासदियाँ दोहराती रहेंगी।

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