राजस्थान में 'ऑपरेशन सिंदूर' के समर्थन में निकाली गई तिरंगा यात्रा के दौरान बीजेपी विधायक बालमुकुंद आचार्य एक वीडियो में राष्ट्रीय ध्वज का अनुचित उपयोग करते नजर आए। यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिससे जन आक्रोश और विपक्षी प्रतिक्रियाओं का सिलसिला शुरू हो गया। इस मामले ने एक बार फिर नेताओं की संवेदनशीलता और जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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राजस्थान की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के समर्थन में आयोजित तिरंगा यात्रा के दौरान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक बालमुकुंद आचार्य का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस वीडियो में आचार्य राष्ट्रीय ध्वज का ऐसा उपयोग करते नजर आ रहे हैं जिसे भारत के झंडा संहिता के अनुसार अनुचित और अपमानजनक माना जा सकता है।
यह तिरंगा यात्रा देशभक्ति और भारतीय सेना के समर्थन के उद्देश्य से निकाली गई थी, लेकिन यह वीडियो यात्रा की गरिमा को ठेस पहुँचाता नजर आया। वीडियो में देखा गया कि विधायक जी ने तिरंगे को जिस प्रकार से पकड़ा और इस्तेमाल किया, वह न केवल भारतीय कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि आम जनता की भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ है।
इस घटना के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। कई लोगों ने इसे “राष्ट्रध्वज का अपमान” बताते हुए कड़ी निंदा की, वहीं विपक्षी दलों ने बीजेपी पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया। कांग्रेस और अन्य दलों ने सवाल उठाए कि क्या बीजेपी केवल प्रचार के लिए तिरंगे का इस्तेमाल कर रही है?
भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के अनुसार, राष्ट्रध्वज को सम्मानपूर्वक उपयोग करना आवश्यक है। इसका कोई भी अनुचित या अनौचित्यपूर्ण उपयोग दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। ध्वज को किसी प्रचार, प्रदर्शन या मंच सज्जा के लिए इस तरह से प्रयोग करना कि उसका सम्मान कम हो, कानून का उल्लंघन है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना भारतीय राजनीति में बढ़ती असंवेदनशीलता का प्रतीक है। देश में जहाँ एक ओर युवाओं को देशभक्ति का संदेश देने की जरूरत है, वहीं नेताओं द्वारा इस प्रकार की लापरवाही जनता के बीच गलत संदेश देती है। यह भी देखा गया है कि कई बार राजनीतिक आयोजनों में तिरंगे का केवल एक प्रतीक के रूप में उपयोग होता है, न कि उसके मूल भाव को समझकर।
हालांकि अभी तक बीजेपी या खुद बालमुकुंद आचार्य की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। राजस्थान की जनता और राष्ट्रभक्त संगठनों ने इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की गलती नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र की जिम्मेदारी का प्रश्न है। तिरंगा सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं, यह भारत की आत्मा, उसकी संस्कृति, और उसकी स्वतंत्रता का प्रतीक है। नेताओं को यह समझना होगा कि उनका हर कार्य जनता की निगाहों में होता है, और ऐसे मामलों में छोटी लापरवाही भी बड़ा राजनीतिक नुकसान कर सकती है।
इस पूरी घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है – क्या राजनेताओं को राष्ट्रध्वज के प्रयोग और उसके सम्मान की विधिवत शिक्षा दी जानी चाहिए? क्या केवल सत्ता के प्रदर्शन के लिए तिरंगे का उपयोग उचित है?
तिरंगे का सम्मान प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है – चाहे वह आम नागरिक हो या उच्च पद पर बैठा कोई जनप्रतिनिधि। इस घटना को केवल आलोचना तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इससे सीख लेकर ऐसी गलतियों से बचने की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए।