मुंबई में एक पिज्जा डिलीवरी एजेंट के साथ दंपत्ति द्वारा की गई बदसलूकी का वीडियो वायरल हो रहा है। आरोप है कि दंपत्ति ने एजेंट से कहा कि वह मराठी नहीं बोलता तो उसे पेमेंट नहीं मिलेगा। इस घटना ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है, जहां भाषा के नाम पर भेदभाव की आलोचना हो रही है।
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इस घटना ने मुंबई जैसे बहुभाषी और सांस्कृतिक रूप से विविध शहर की छवि को झटका दिया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या भाषा के नाम पर किसी को नीचा दिखाना सही है? घटना दक्षिण मुंबई के एक पॉश इलाके की बताई जा रही है, जहां यह दंपत्ति अक्सर ऑनलाइन फूड ऑर्डर करता था।
वीडियो में महिला ग्राहक डिलीवरी बॉय को डांटते हुए कहती है, “अगर तुम मराठी नहीं बोल सकते, तो तुमको यहाँ काम नहीं करना चाहिए।” वहीं पुरुष ग्राहक का कहना है कि वह केवल उन्हीं से डिलीवरी लेंगे जो मराठी में संवाद कर सकें। डिलीवरी एजेंट, जो उत्तर भारत का रहने वाला है, बार-बार विनम्रता से समझाने की कोशिश करता है कि वह सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा है और भाषा की कोई नीयत से गलती नहीं है।
घटना का वीडियो जैसे ही इंटरनेट पर आया, सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। ट्विटर और इंस्टाग्राम पर #SpeakMarathi और #StopLanguageBias जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। कई लोगों ने इसे “भाषाई नस्लवाद” करार दिया और प्रशासन से इस तरह के भेदभाव के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
Zomato, Swiggy और अन्य फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स ने भी बयान जारी कर कहा कि वे अपने डिलीवरी पार्टनर्स के साथ किसी भी तरह के भाषाई या जातीय भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने पीड़ित डिलीवरी एजेंट को सपोर्ट देने की बात कही और उस ग्राहक पर आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया।
मुंबई पुलिस ने भी इस घटना का संज्ञान लिया है और प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है। डिलीवरी एजेंट से पूछताछ की गई है, और वीडियो के आधार पर संबंधित दंपत्ति की पहचान करने की प्रक्रिया जारी है। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि अगर शिकायत दर्ज होती है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धार्मिक और भाषाई आधार पर वैमनस्य फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — क्या मुंबई जैसे महानगर में भाषाई असहिष्णुता बढ़ रही है? जहां एक ओर भारत की विविधता उसकी ताकत मानी जाती है, वहीं दूसरी ओर इस तरह की घटनाएं सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
शहर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि इस प्रकार का व्यवहार न केवल अमानवीय है, बल्कि यह मुंबई की “सर्व भाषा, सर्व धर्म” वाली छवि को धूमिल करता है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि डिलीवरी एजेंट्स और प्रवासी श्रमिकों को सुरक्षा देने के लिए ठोस नियम बनाए जाएं।
घटना के बाद डिलीवरी एजेंट ने कहा, “मैं यहां रोज़ी-रोटी के लिए आया हूं। मैं सभी भाषाओं की इज़्ज़त करता हूं लेकिन जबरन किसी भाषा को थोपना सही नहीं है।” उसकी सादगी और संयम ने कई लोगों का दिल जीत लिया और लोग उसके समर्थन में खुलकर सामने आए।
इस बीच, सोशल मीडिया पर हजारों यूज़र्स ने उस डिलीवरी एजेंट को सपोर्ट किया और कहा कि मुंबई को फिर से “सबकी मुंबई” बनाना ज़रूरी है, जहां भाषा या जाति नहीं, बल्कि इंसानियत सबसे ऊपर हो।