भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम को लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बदले रुख ने एक नई बहस को जन्म दिया है। ट्रंप के पहले के बयानों की तुलना में यह यू-टर्न कई कूटनीतिक सवाल खड़े करता है। क्या यह बयान रणनीतिक है या बदले हुए वैश्विक समीकरणों का संकेत?
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भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष और सीमावर्ती तनाव के बीच संघर्षविराम (Ceasefire) एक उम्मीद की किरण के रूप में सामने आया था। इस बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान ने सभी को चौंका दिया है। ट्रंप, जो अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान को “आतंकवाद का आश्रयदाता” बताते रहे, अब संघर्षविराम की तारीफ करते नजर आए हैं। यह यू-टर्न केवल चौंकाने वाला नहीं, बल्कि भारत की कूटनीतिक रणनीति पर भी प्रश्न उठाता है।
ट्रंप का यह नया बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती क्षेत्र में सन्नाटा है। दोनों देशों ने फरवरी 2021 में संघर्षविराम का पालन करने पर सहमति जताई थी और तब से कई बार इसका उल्लंघन न होने की खबरें आई हैं। लेकिन अब जब ट्रंप इस प्रयास की सराहना कर रहे हैं, तो यह सवाल उठता है — क्या यह सिर्फ बयानबाज़ी है, या अमेरिका की बदलती विदेश नीति की ओर इशारा?
ट्रंप का इतिहास बताता है कि वे पाकिस्तान को लेकर बेहद कठोर रुख रखते थे। उन्होंने आर्थिक सहायता पर रोक लगाई थी और पाकिस्तान से ‘डू मोर’ की मांग की थी। वहीं भारत के साथ संबंधों को उन्होंने मजबूती दी थी। लेकिन अब उनके बदले सुर को कुछ विशेषज्ञ अमेरिकी राजनीति में हो रहे बदलावों और 2024 के अमेरिकी चुनाव की तैयारियों से जोड़ रहे हैं।
कई विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की यह बयानबाज़ी चीन को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा हो सकती है। दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर अमेरिका की चिंता स्वाभाविक है। भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित होने से क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव बना रह सकता है, जो चीन के लिए एक संतुलनकारी शक्ति बन सकेगा।
इसके अलावा, कुछ जानकार मानते हैं कि यह यू-टर्न मुस्लिम वोट बैंक को साधने की भी कोशिश हो सकती है। अमेरिकी राजनीति में पाकिस्तानी और मुस्लिम समुदाय एक अहम भूमिका निभाते हैं। ट्रंप की ओर से इस तरह का बयान देकर वे शायद एक उदार नेता की छवि बनाना चाह रहे हों, जो सबके साथ संवाद चाहता है।
भारत में इस बयान को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। जहां एक ओर कुछ लोग इसे भारत की कूटनीतिक जीत बता रहे हैं, वहीं कुछ इसे अमेरिकी राजनीति का नाटक मानते हैं। भारत की विदेश नीति हमेशा से “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) पर आधारित रही है, और भारत किसी भी बाहरी दबाव के आगे झुकने में विश्वास नहीं करता।
पाकिस्तान की ओर से इस बयान को लेकर सकारात्मक संकेत दिए गए हैं। वहां की सरकार ने ट्रंप के बयान का स्वागत किया है और कहा है कि अमेरिका को इस क्षेत्र में शांति के लिए और सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। लेकिन भारत का रुख साफ है — सिर्फ बातचीत नहीं, विश्वास और आतंकवाद मुक्त माहौल भी जरूरी है।
अमेरिका की यह बदलती हुई भूमिका एक बार फिर इस सवाल को जन्म देती है कि क्या वैश्विक शक्तियाँ वास्तव में क्षेत्रीय शांति चाहती हैं, या सिर्फ अपने रणनीतिक हितों को साध रही हैं?
भारत-पाक संघर्षविराम और ट्रंप की टिप्पणी दोनों ही इस समय बेहद महत्वपूर्ण हैं। यह वक्त है जब भारत को अपनी स्थायी रणनीति और कूटनीतिक स्थिति को मजबूत बनाए रखना होगा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्पष्ट नीति और आतंकवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस को दोहराना आज पहले से कहीं अधिक जरूरी है।