पश्चिम बंगाल में हालिया राजनीतिक तनाव और चुनावी हिंसा के मद्देनज़र, कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने चुनाव के दौरान राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है। उनका मानना है कि इससे निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराना संभव होगा। हालांकि, विरोधी पक्ष इसे लोकतंत्र पर कुठाराघात मानते हैं। इस विषय पर बहस तेज़ हो गई है और यह सवाल उठ रहा है कि क्या राष्ट्रपति शासन वास्तव में बंगाल की स्थिति सुधार सकता है?
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पश्चिम बंगाल एक बार फिर चर्चा में है। चुनावी मौसम शुरू होते ही राज्य में राजनीतिक दलों के बीच टकराव, हिंसा और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज़ हो गया है। ऐसे माहौल में राष्ट्रपति शासन की मांग ने एक नई बहस को जन्म दिया है। सवाल यह उठता है कि क्या चुनाव के दौरान राष्ट्रपति शासन लगाना लोकतंत्र को मजबूती देगा या यह एक राजनीतिक चाल है?
पिछले कुछ वर्षों में बंगाल में चुनावी हिंसा एक आम बात बन चुकी है। पंचायत चुनावों से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनावों तक, हर स्तर पर हिंसा, बूथ कैप्चरिंग और धमकियों की घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं के चलते कई राजनीतिक दलों का मानना है कि राज्य सरकार निष्पक्ष चुनाव कराने में विफल रही है। ऐसे में केंद्र सरकार से यह मांग की जा रही है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर चुनाव कराए जाएं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 यह प्रावधान करता है कि यदि किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाती है, तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। हालांकि, यह कदम तभी उठाया जाना चाहिए जब इसके पर्याप्त कारण और प्रमाण मौजूद हों। चुनाव के दौरान हिंसा या अस्थिरता इसकी एक संभावित वजह हो सकती है, बशर्ते राज्य सरकार स्थिति को नियंत्रित करने में अक्षम हो।
विपक्षी पार्टियों और कई सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह मांग लोकतंत्र के खिलाफ है। उनका तर्क है कि हर राज्य में चुनावी तनाव होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर बार राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। वे इसे केंद्र की सत्ता द्वारा विपक्षी सरकारों को कमजोर करने की रणनीति बताते हैं।
राज्य की आम जनता चाहती है कि चुनाव शांतिपूर्वक हों, चाहे वह किसी भी सरकार के अंतर्गत हों। लेकिन जब जान-माल की सुरक्षा खतरे में हो, तो लोगों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या मौजूदा सरकार पर्याप्त व्यवस्था कर पा रही है? ऐसे में राष्ट्रपति शासन एक विकल्प के रूप में सामने आता है, खासकर जब प्रशासन पर जनता का भरोसा कम होने लगे।
चुनाव लोकतंत्र का मूल स्तंभ है, और इसकी निष्पक्षता बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। यदि किसी राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा, भ्रष्टाचार या प्रशासनिक पक्षपात जैसी घटनाएं होती हैं, तो यह न केवल चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं, बल्कि लोकतंत्र को भी कमजोर करती हैं। इसलिए जरूरी है कि चुनाव आयोग, प्रशासन और सरकार मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर वोट निष्पक्ष और सुरक्षित माहौल में डाला जाए।