पश्चिम बंगाल में हालिया हिंसा और प्रशासनिक विफलता के बाद एक नया राजनीतिक विमर्श खड़ा हो गया है — "बंगाल मांगे योगी"। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन मॉडल को बंगाल में लागू करने की मांग सोशल मीडिया से लेकर धरातल तक उठने लगी है। सवाल यह है कि क्या बंगाल अब सख्त प्रशासनिक शैली की ओर देख रहा है?
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पश्चिम बंगाल की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, एक नया नारा तेजी से लोकप्रिय हो रहा है – “बंगाल मांगे योगी”। यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि उस असंतोष की अभिव्यक्ति है जो राज्य में बढ़ती हिंसा, वक्फ कानून को लेकर उपजे टकराव और प्रशासनिक नाकामी के चलते लोगों के मन में घर कर गई है।
हाल के महीनों में मुर्शिदाबाद, हावड़ा, कोलकाता और अन्य इलाकों में वक्फ संपत्ति विवाद, सांप्रदायिक तनाव और खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाने की घटनाएं लगातार सामने आई हैं। पुलिस की निष्क्रियता और राजनीतिक हस्तक्षेप ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रशासनिक मॉडल ‘zero tolerance’ की नीति पर आधारित है। अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई, माफिया राज को खत्म करने की मुहिम और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा जैसे निर्णयों ने उन्हें ‘सख्त प्रशासक’ की छवि दी है। यही कारण है कि बंगाल के कई नागरिक अब ऐसे ही नेतृत्व की मांग कर रहे हैं।
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#BengalMaangeYogi, #YogiForBengal, #BulldozerInBengal जैसे हैशटैग ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड करने लगे हैं। इसके पीछे सिर्फ बीजेपी आईटी सेल नहीं, बल्कि आम जनता का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है, जो राज्य में बढ़ती असुरक्षा से चिंतित है।
टीएमसी और अन्य विपक्षी दलों ने इस नारे को बीजेपी का “राजनीतिक स्टंट” बताया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट किया है कि बंगाल की प्रशासनिक शैली यूपी जैसी नहीं हो सकती। हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि कई इलाकों में लोग ममता सरकार की निष्क्रियता से नाराज़ हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि 2026 के विधानसभा चुनावों में यह नारा बीजेपी के लिए रणनीतिक रूप से अहम साबित हो सकता है। 2021 में 77 सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी अब बंगाल में खुद को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश कर रही है। और “बंगाल मांगे योगी” का नारा इसी रणनीति का हिस्सा है।
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हालांकि, बंगाल का समाज खुद को सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से अलग मानता है। यहां सख्त प्रशासनिक फैसलों की जगह लोकतांत्रिक विमर्श को प्राथमिकता दी जाती रही है। ऐसे में योगी मॉडल को लागू करना न सिर्फ एक प्रशासनिक परिवर्तन होगा बल्कि यह बंगाल की राजनीति की मूलधारा को भी बदल सकता है।
बंगाल के युवा, व्यापारिक समुदाय और महिलाएं अब ज्यादा सुरक्षित और स्थिर माहौल की मांग कर रहे हैं। बढ़ते अपराध और धार्मिक उग्रता ने आम नागरिकों को डरा दिया है। ऐसे में “बंगाल मांगे योगी” सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक भावनात्मक मांग बनता जा रहा है।
“बंगाल मांगे योगी” अब एक राजनीतिक नारे से आगे बढ़कर जनभावना का रूप ले चुका है। चाहे राजनीतिक दल इसे स्वीकारें या न करें, मगर यह स्पष्ट है कि बंगाल की जनता अब बदलाव चाहती है – और वह बदलाव कड़ा, निर्णायक और प्रभावशाली हो।
क्या योगी आदित्यनाथ का मॉडल बंगाल में फिट बैठेगा? यह आने वाले समय और चुनावी परिणाम ही तय करेंगे।