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पहुंची आवाज़, जलती रही उम्मीद: पहलगाम में हिंदुओं की हत्या पर कश्मीरी पंडित समाज का कैंडल मार्च

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हिंदुओं की टारगेट किलिंग के खिलाफ कश्मीरी पंडित समाज ने जोरदार विरोध दर्ज किया। भावुक माहौल में आयोजित कैंडल मार्च ने सरकार से न्याय की मांग और सुरक्षा सुनिश्चित करने की गुहार लगाई। यह मार्च न केवल शोक प्रदर्शन था, बल्कि एक मजबूत संदेश भी कि अब और चुप्पी नहीं।

By bishanpreet345@gmail.com 

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कश्मीरी पंडितों का आक्रोश: न्याय के लिए सड़कों पर उतरे

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हिंदुओं की टारगेट किलिंग की घटना ने एक बार फिर कश्मीरी पंडित समाज के जख्मों को हरा कर दिया है। इस दर्दनाक घटना के खिलाफ कश्मीरी पंडित समाज ने एकजुट होकर कैंडल मार्च निकाला, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। यह मार्च केवल एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि न्याय की मांग और सुरक्षा की पुकार भी था।

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दिल्ली, जम्मू, श्रीनगर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में बसे कश्मीरी पंडितों ने हाथों में मोमबत्तियां लेकर अपनी आवाज़ बुलंद की। वे पोस्टर और बैनर लेकर निकले जिन पर लिखा था – “हम इंसाफ चाहते हैं”, “हिंदुओं की हत्या बंद करो”, और “टारगेट किलिंग के खिलाफ एकजुट भारत”

सरकार से मांगी ठोस कार्रवाई

कश्मीरी पंडित समाज के प्रतिनिधियों ने इस दौरान साफ शब्दों में कहा कि केवल बयानबाजी नहीं, अब उन्हें जमीनी स्तर पर कार्रवाई चाहिए। एक वक्ता ने कहा, “हमने 90 के दशक का नरसंहार देखा है। अब फिर से वही दौर नहीं दोहराया जाना चाहिए।”

गृह मंत्रालय से मांग की गई कि पहलगाम और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाई जाए और हिंदू समुदाय को सुरक्षा का भरोसा दिया जाए। साथ ही, आतंकियों के खिलाफ स्पेशल ऑपरेशन चलाने की भी मांग की गई।

युवा पीढ़ी भी सामने आई

कैंडल मार्च में सबसे खास बात यह रही कि इसमें युवा कश्मीरी पंडितों की बड़ी भागीदारी रही। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम चुप न बैठें। वे डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को उठा रहे हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस अत्याचार की आवाज़ पहुंच सके।

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एक युवा ने कहा, “हमें सिर्फ सहानुभूति नहीं, एक्शन प्लान चाहिए। अगर सरकार हमारी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती, तो यह लोकतंत्र की हार है।”

राजनीतिक नेताओं और संगठनों का समर्थन

इस कैंडल मार्च को कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिला। कई विधायकों, पूर्व नौकरशाहों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया और सरकार से मांग की कि वे कश्मीरी हिंदुओं की घर वापसी और पुनर्वास योजना को अब केवल कागजों में नहीं, जमीन पर लाएं।

साथ ही यह अपील की गई कि सभी राजनीतिक दल इस संवेदनशील मुद्दे पर एकजुट हो जाएं और टारगेट किलिंग के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएं।


एकजुटता का संदेश

इस मार्च ने सिर्फ गुस्सा ही नहीं, बल्कि आशा और एकता का संदेश भी दिया। मोमबत्तियों की लौ के साथ, लोगों की आंखों में आंसू और दिलों में उम्मीद थी कि शायद अब बदलाव आएगा।

कश्मीरी पंडित समाज ने यह स्पष्ट किया कि वे पीछे नहीं हटेंगे, और संविधान के तहत मिले अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि टारगेट किलिंग की हर घटना पर अब तुरंत न्यायिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप होना चाहिए।

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