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“नाटक के मंच पर राहुल गांधी: राजनीति में एक्टिंग या असली मुद्दों से भटकाव?”

राहुल गांधी अक्सर अपने बयानों और व्यवहारों से सुर्खियों में रहते हैं, लेकिन कई बार उनके भाषण और गतिविधियाँ 'नाटक' जैसी प्रतीत होती हैं। भाजपा समेत कई विपक्षी दल उन्हें ड्रामा आर्टिस्ट करार देते हैं। जनता के बीच यह सवाल उठता है कि क्या राहुल असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहे हैं या यह उनकी राजनीति की रणनीति है? इस रिपोर्ट में करते हैं इसी पर गहराई से विश्लेषण।

By bishanpreet345@gmail.com 

Updated Date

भारतीय राजनीति में हर नेता की एक अलग पहचान होती है। कोई जमीन से जुड़कर काम करता है तो कोई भाषणों और सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों से जुड़ने की कोशिश करता है। लेकिन जब बात राहुल गांधी की होती है, तो उनकी छवि एक ऐसे नेता की बन गई है जो राजनीतिक ‘नाटक’ करने में माहिर हैं। चाहे वह संसद में आंख मारने की घटना हो, प्रधानमंत्री को ‘चौकीदार चोर है’ कहना हो, या फिर भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कैमरों के सामने भावुक होना – हर बार राहुल गांधी पर ‘ड्रामा’ करने के आरोप लगते रहे हैं।

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राजनीति का रंगमंच: राहुल गांधी की रणनीति?

 

राहुल गांधी एक ऐसे राजनेता हैं जिनकी राजनीति में यात्रा संघर्षों से भरी रही है। लेकिन जनता और मीडिया के एक हिस्से को लगता है कि वे असली मुद्दों को छोड़कर केवल सस्ती लोकप्रियता के लिए नाटकीय स्टंट करते हैं। 2018 में संसद में पीएम मोदी को गले लगाना और फिर आंख मारना एक बड़ा उदाहरण रहा। इस घटना ने उन्हें ट्रोल का विषय बना दिया और कई लोगों ने इसे संसद की गरिमा के खिलाफ माना।

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‘भारत जोड़ो यात्रा’: एक सकारात्मक पहल या इमेज मेकओवर?

 

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को उन्होंने देश को जोड़ने की एक कोशिश बताया, लेकिन कई विश्लेषकों और नेताओं ने इसे इमेज मेकओवर का तरीका करार दिया। यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने गरीबों से मिलकर, मछुआरों की नाव पर बैठकर और स्कूलों में बच्चों से बात कर खूब सुर्खियाँ बटोरीं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सब स्वाभाविक था या कैमरे के लिए तैयार किया गया नाटक?

 

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राजनीतिक विरोधियों की प्रतिक्रिया

 

भाजपा के कई नेताओं ने खुलकर राहुल गांधी को ‘पार्ट टाइम नेता’, ‘ड्रामा किंग’ और ‘स्क्रिप्टेड पॉलिटिशियन’ कहा है। अमित शाह, स्मृति ईरानी और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने उनके बयानों को “सिर्फ़ दिखावा” बताया है। उनका कहना है कि राहुल गांधी जनता से जुड़ने का केवल दिखावा करते हैं जबकि असली मुद्दों पर उनका कोई स्पष्ट रुख नहीं होता।

 

जनता की प्रतिक्रिया: विभाजित राय

 

सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के बयानों और गतिविधियों को लेकर जनता की राय बंटी हुई है। कुछ लोग उन्हें ईमानदार और संवेदनशील नेता मानते हैं, जो जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ एक बड़ा वर्ग उन्हें केवल एक ड्रामा कलाकार के रूप में देखता है, जिनके पास न ठोस विजन है, न स्पष्ट नीति।

 

क्या राहुल गांधी बदल रहे हैं?

 

हाल के समय में राहुल गांधी का संवाद शैली थोड़ा बदला जरूर है। अब वे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जैसे बेरोजगारी, महंगाई, महिला सुरक्षा आदि। लेकिन उनकी हर कोशिश में ‘ड्रामा’ की झलक अक्सर देखी जाती है, जिससे उनकी गंभीरता पर सवाल उठते हैं।

 

निष्कर्ष

 

राजनीति में प्रभावी बनने के लिए केवल अभिनय या कैमरा फ्रेंडली इमेज काफी नहीं होती। जनता उन नेताओं को पसंद करती है जो ज़मीनी हकीकत को समझते हैं और उसके लिए आवाज उठाते हैं। राहुल गांधी को अगर अपनी राजनीतिक छवि मजबूत करनी है, तो उन्हें ‘नाटक’ से ज्यादा ‘नीति’ और ‘दृष्टिकोण’ पर ध्यान देना होगा।

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