जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर देशभर में आक्रोश है। दिल्ली में नागरिकों, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं ने मिलकर शांति और एकजुटता के संदेश के साथ कैंडल मार्च निकाला। इस दौरान शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई और आतंक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग उठी।
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस भयावह हमले में दर्जनों निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जिसमें पर्यटक और स्थानीय निवासी शामिल थे। इस घटना के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लोगों ने भारी संख्या में सड़कों पर उतरकर कैंडल मार्च निकाला। इंडिया गेट, राजघाट और कनॉट प्लेस जैसे प्रमुख स्थलों पर हजारों की संख्या में लोग मोमबत्तियां लेकर एकजुट हुए और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कैंडल मार्च का उद्देश्य केवल दुख और संवेदना व्यक्त करना नहीं था, बल्कि यह सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को यह संदेश देने का प्रयास भी था कि आम जनता आतंक के खिलाफ एकजुट है। मार्च के दौरान “भारत माता की जय”, “शहीद अमर रहें”, और “आतंकवाद मुर्दाबाद” जैसे नारों से दिल्ली की फिजा गूंज उठी।
कैंडल मार्च में बड़ी संख्या में कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र, एनजीओ के प्रतिनिधि, पूर्व सैनिक, और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। इन सभी ने अपने हाथों में पोस्टर और बैनर लेकर यह मांग की कि सरकार आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। कई संगठनों ने यह भी सुझाव दिया कि देश में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में इस घटना को याद किया जाए।
दिल्ली के इस कैंडल मार्च में कुछ राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हुए, लेकिन इस दौरान राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित की बातें की गईं। नेताओं ने कहा कि यह समय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं बल्कि एकजुट होकर आतंक के खिलाफ खड़े होने का है। उन्होंने सरकार से कहा कि सुरक्षा व्यवस्था को और मज़बूत किया जाए ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।
कैंडल मार्च की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। #PahalgamAttack, #CandleMarchDelhi, और #UnitedAgainstTerror जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। इससे पता चला कि देशभर के लोग इस दर्द में एकजुट हैं और आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख की उम्मीद करते हैं।
कैंडल मार्च में हिस्सा लेने वालों की प्रमुख मांग थी कि सरकार अब सिर्फ कड़े बयान नहीं, बल्कि जमीन पर ठोस कार्रवाई करे। युवाओं ने यह भी कहा कि हमें आतंक को जड़ से खत्म करने के लिए एक लंबी रणनीति बनानी होगी, जिसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, और स्थानीय समर्थन की जरूरत है।