जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार के बदलते रुख पर गुजरात कांग्रेस ने खुशी जताई है। पार्टी नेताओं ने इसे राहुल गांधी की रणनीति और जनहित की राजनीति का नतीजा बताया है। कांग्रेस का दावा है कि जातीय आंकड़े सामने आने से समाज के पिछड़े वर्गों को न्याय मिलेगा और संसाधनों का सही बंटवारा हो सकेगा।
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गुजरात में कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में उस समय उत्साह की लहर दौड़ गई जब केंद्र सरकार की ओर से जातीय जनगणना को लेकर सकारात्मक संकेत मिले। यह मुद्दा पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में गर्माया हुआ है, और अब जब केंद्र ने इसे लेकर अपनी स्थिति में नरमी दिखाई है, तो कांग्रेस ने इसे जनता की जीत और राहुल गांधी की दूरदृष्टि बताया है।
गुजरात कांग्रेस प्रमुख ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और उनकी लगातार सामाजिक न्याय पर केंद्रित राजनीति ने जातीय जनगणना जैसे अहम मुद्दे को राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनाया। उन्होंने यह भी कहा कि “जातीय जनगणना केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि सामाजिक हक का दस्तावेज़ है।” कांग्रेस का मानना है कि इससे समाज के वंचित तबकों को उनकी सही भागीदारी और अधिकार मिलने की दिशा में रास्ता साफ होगा।
गुजरात कांग्रेस नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी ने जिस तरह से पिछड़े वर्गों की आवाज़ को संसद से लेकर सड़क तक उठाया, वह अब रंग लाने लगा है। बिहार, कर्नाटक और अन्य राज्यों में कांग्रेस की जातीय जनगणना की मांग और राज्य स्तर पर लागू करने की पहल से राष्ट्रीय दबाव बढ़ा। पार्टी का दावा है कि अगर यह जनगणना होती है, तो इसका सबसे बड़ा लाभ ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग को मिलेगा, जिनकी आबादी तो ज्यादा है लेकिन संसाधनों में हिस्सेदारी कम।
इस मुद्दे पर गुजरात कांग्रेस ने बीजेपी को भी घेरा। पार्टी नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने अब तक जातीय जनगणना से बचने की कोशिश की क्योंकि इससे वास्तविक सामाजिक असमानताएं उजागर होतीं। लेकिन अब जब जनता का दबाव बढ़ा और विपक्ष ने इसे मुद्दा बना दिया, तो केंद्र को अपना रुख बदलना पड़ा। कांग्रेस प्रवक्ताओं ने कहा, “भले ही सरकार को श्रेय न मिले, लेकिन राहुल गांधी की सोच ने इस दिशा में दरवाज़ा खोला है।”
जातीय जनगणना की बहस ने गुजरात की राजनीति में नई ऊर्जा भर दी है। प्रदेश कांग्रेस को उम्मीद है कि इससे राज्य में ओबीसी और अन्य वंचित समुदायों में पार्टी के प्रति झुकाव बढ़ेगा। कांग्रेस अब अपने आगामी चुनावी अभियान में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने की तैयारी कर रही है। पार्टी की योजना है कि वह इसे “हक की गिनती” के रूप में प्रचारित करे और लोगों को बताए कि उनका अधिकार तब तक अधूरा है, जब तक उनकी गिनती नहीं होती।
जातीय जनगणना पर केंद्र की बदली रणनीति से गुजरात कांग्रेस को राजनीतिक संजीवनी मिलती नजर आ रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व को जहां पार्टी के भीतर सराहा जा रहा है, वहीं बीजेपी को इस मुद्दे पर सफाई देनी पड़ रही है। आने वाले समय में यह मुद्दा देश की राजनीति में और गहराई से असर डालेगा।