जम्मू-कश्मीर में हालिया आतंकी हमलों के मद्देनज़र बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सभी प्रमुख दलों ने एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाने की मांग की। बैठक में केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ विपक्षी दलों ने भी भाग लिया और शांति बहाली को प्राथमिकता देने पर सहमति जताई। यह बैठक राष्ट्रीय सुरक्षा और जनजीवन की रक्षा के लिए एक सकारात्मक पहल मानी जा रही है।
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जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए आतंकी हमलों के बाद राज्य में फैले तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए एक सर्वदलीय बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों, राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों और सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने भाग लिया। बैठक का उद्देश्य आतंकवाद से निपटने की रणनीति तय करना और घाटी में शांति और स्थायित्व लाने के उपायों पर विचार करना था।
बैठक की अध्यक्षता उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने की, जिसमें भाजपा, कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, और अपनी पार्टी जैसे प्रमुख दलों के नेता शामिल हुए। इस सर्वदलीय बैठक का संदेश स्पष्ट था — राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर आतंकवाद के खिलाफ एक साझा रणनीति अपनाना।
बैठक में सभी नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को जड़ से खत्म करना अब वक्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है। नेताओं ने केंद्र सरकार से मांग की कि सुरक्षा बलों को और मज़बूत किया जाए, खुफिया तंत्र को सशक्त किया जाए और सीमा पार से हो रही घुसपैठ पर पूरी तरह रोक लगाई जाए। साथ ही, हमले में घायल और मृतक के परिवारों को त्वरित सहायता देने पर भी बल दिया गया।
विपक्षी दलों ने सरकार की आतंकवाद के खिलाफ नीति का समर्थन किया लेकिन साथ ही न्यायिक पारदर्शिता की मांग की। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सुरक्षा के नाम पर जन अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखने की अपील की।
बैठक में एक और अहम बिंदु यह रहा कि शांति बहाली के लिए जन संवाद और स्थानीय स्तर पर विश्वास निर्माण की प्रक्रिया तेज़ की जाए। नेताओं ने सुझाव दिया कि घाटी में स्थानीय पंचायतों, युवाओं और नागरिक समूहों को शामिल करके एक मजबूत नागरिक-सुरक्षा गठजोड़ बनाया जाए ताकि अफवाहों और आतंक के खिलाफ जन सहयोग मिले।
केंद्र सरकार की ओर से बैठक में शामिल प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया कि आतंकवाद के खिलाफ “जीरो टॉलरेंस” नीति जारी रहेगी और सुरक्षा बलों को पूरी स्वतंत्रता दी गई है। साथ ही, विकास परियोजनाओं और रोजगार योजनाओं को तेज़ी से लागू करने का भी वादा किया गया ताकि युवा कट्टरपंथ की ओर न बढ़ें।