समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जातिगत जनगणना (Caste Census) को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने इसे सामाजिक न्याय और समान अवसरों की दिशा में अहम कदम बताया। अखिलेश का कहना है कि जातिगत जनगणना से ही वंचित वर्गों को उनके अधिकार मिल सकेंगे और यह सिर्फ डेटा नहीं, हक की बात है।
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लखनऊ: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक बार फिर जातिगत जनगणना (Caste Census) को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक आंकड़ों की कवायद नहीं, बल्कि वंचित और पिछड़े वर्गों को उनके हक और सम्मान दिलाने का साधन है। अखिलेश ने कहा कि अगर समाज को सच्चे अर्थों में समानता की ओर ले जाना है तो जातिगत जनगणना कराना जरूरी है।
अखिलेश यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा, “जातिगत जनगणना भारत की सच्चाई को सामने लाएगी। अगर सरकार वाकई में सबका साथ-सबका विकास चाहती है, तो उसे सबसे पहले यह जानना होगा कि समाज में कौन कितना पीछे है और उसे किस स्तर पर मदद की जरूरत है।”
अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि जब तक जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं होंगे, तब तक आरक्षण, योजनाओं और संसाधनों का सही बंटवारा नहीं हो सकता। उन्होंने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर जातिगत जनगणना से बच रही है क्योंकि इससे हाशिए पर खड़े समुदायों को असली तस्वीर समझ में आएगी।
उन्होंने आगे कहा, “जाति आधारित भेदभाव खत्म करने के लिए पहले उसे समझना होगा। जब तक आंकड़े नहीं होंगे, तब तक नीति नहीं बन सकती। और जब तक नीति नहीं बनेगी, तब तक न तो बराबरी आएगी और न ही विकास।”
अखिलेश यादव ने बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा कराई गई जातिगत सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि यह एक सराहनीय कदम था। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी यह प्रक्रिया होनी चाहिए ताकि सामाजिक योजनाओं का लाभ निष्पक्ष तरीके से सभी को मिल सके।
उन्होंने दोहराया कि उनकी पार्टी सत्ता में आने पर सबसे पहले जातिगत जनगणना को लागू करेगी और उस आधार पर आर्थिक व सामाजिक नीतियां बनाएगी।
अखिलेश यादव ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा केवल धार्मिक भावनाएं भड़काकर मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है। उन्होंने कहा, “जब सरकार जनता से जुड़े मुद्दों पर बात करने से कतराती है, तो यह साफ है कि उसके इरादे संदिग्ध हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A इस मुद्दे पर एकजुट है और संसद से सड़क तक सरकार को घेरने का काम करेगा।
अखिलेश यादव का यह बयान ना केवल जातिगत जनगणना की मांग को बल देता है, बल्कि देश में चल रही सामाजिक न्याय की बहस को भी नया आयाम देता है। उन्होंने यह साफ कर दिया है कि यह लड़ाई आंकड़ों की नहीं, अधिकारों की है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में जातिगत जनगणना किस हद तक बड़ा मुद्दा बनता है।