आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि “चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों के प्रति उनके भीतर कोई सम्मान नहीं है।” उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी विपक्ष‑शासित राज्यों में ज़रूरत से ज़्यादा राज्यपाल हस्तक्षेप, एजेंसी दबाव और ‘ऑपरेशन लोटस’ जैसे हथकंडों से जनमत को कुचल रही है। कक्कड़ के इस बयान ने केंद्र‑राज्य संबंधों और संघीय ढाँचे को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
Updated Date
दिल्ली में मीडिया ब्रीफ़िंग के दौरान प्रियंका कक्कड़ ने महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली और पश्चिम बंगाल का हवाला देते हुए कहा कि जहाँ‑जहाँ ग़ैर‑भाजपा सरकारें बनीं, वहाँ या तो विधायकों की ख़रीद‑फरोख़्त की कोशिश हुई या फिर संवैधानिक संस्थाओं को दुरुपयोग कर कामकाज बाधित किया गया।
कक्कड़ का कहना था—
“राज्यपाल लोकतंत्र के संरक्षक होने चाहिए, मगर बीजेपी उन्हें ‘पार्टी एजेंट’ बनाकर निर्वाचित सरकार को बंधक बना रही है।”
उन्होंने दिल्ली‑GNCTD विवाद, पंजाब के बिल होल्ड‑अप और बंगाल की फाइल वापसी प्रकरण का उदाहरण पेश किया।
AAP प्रवक्ता ने ईडी‑सीबीआई रेड की बढ़ती संख्या को “राजनीतिक बदले” का ज़रिया बताया। उनका दावा है कि 2014 से अब तक केंद्र ने विपक्षी मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों व नगरपालिकाओं पर 200% ज़्यादा छापे डाले, जबकि भाजपा शासित राज्यों में यही संस्थाएँ “ख़ामोश” रहती हैं।
प्रियंका कक्कड़ ने कहा कि बीते वर्षों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गोवा, अरुणाचल व महाराष्ट्र में चुनी हुई सरकारें “पैसे‑बल और जांच‑बल” के सहारे गिराई गईं; यह संघीय ढाँचे के लिए ख़तरा है।
“जनता ने जिस सरकार को पाँच साल mandato दिया, उसे आधे रास्ते में तोड़ना लोकतंत्र का अपमान है।”
संवैधानिक सुधार – राज्यपाल नियुक्ति की पारदर्शी प्रक्रिया और उनकी कार्य‑सीमाएँ स्पष्ट हों।
फेडरल कमिटी – केंद्र व राज्यों के मतभेद निपटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में समिति।
एजेंसी ओम्बड्समैन – CBI/ED पर संसदीय निगरानी, ताकि राजनीतिक दुरुपयोग रोका जा सके।
भाजपा प्रवक्ताओं ने कक्कड़ के आरोपों को “AAP का राजनीतिक ड्रामा” बताया। उन्होंने कहा कि एजेंसियाँ सिर्फ़ भ्रष्टाचार पर ऐक्शन लेती हैं; अगर AAP और अन्य दल पाक‑साफ़ हैं, तो डर किस बात का?
संवैधानिक मामलों के जानकार मानते हैं कि राज्यपाल‑सरकार टकराव नया नहीं, पर हालिया वर्षों में बढ़ा जरूर है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार टिप्पणी की है कि केंद्र‑राज्य संतुलन बिगड़ना “सहकारी संघवाद” की आत्मा को चोट पहुँचा सकता है।
प्रियंका कक्कड़ का बयान विपक्षी दलों में बढ़ती बेचैनी को प्रतिध्वनित करता है। 2024‑25 के चुनावी परिदृश्य में संघीय ढाँचा, एजेंसी निष्पक्षता और चुनी हुई सरकारों का सम्मान बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। देखने वाली बात होगी कि केंद्र इस आलोचना का जवाब संस्थागत सुधार से देता है या सियासी बयानबाज़ी से।