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क्या ममता बनर्जी कभी थीं ‘हिंदूवादी’? मुर्शिदाबाद हिंसा के बीच उठे पुराने राजनीतिक सवाल

मुर्शिदाबाद हिंसा के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पुराने बयानों और 'हिंदूवादी' छवि की चर्चा एक बार फिर ज़ोर पकड़ने लगी है। राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी नेताओं द्वारा यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या ममता बनर्जी की छवि समय के साथ बदली है या रणनीतिक रूप से बदली गई? मुर्शिदाबाद की घटनाओं ने बंगाल की राजनीति को नए सिरे से गरमा दिया है।

By bishanpreet345@gmail.com 

Updated Date

क्या ममता बनर्जी कभी थीं ‘हिंदूवादी’? मुर्शिदाबाद हिंसा ने फिर छेड़ा पुराना मुद्दा

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पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में हाल ही में हुई हिंसा ने राज्य की राजनीति को एक बार फिर उथल-पुथल कर दिया है। इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर एक दिलचस्प राजनीतिक बहस भी जोर पकड़ रही है — क्या ममता बनर्जी कभी हिंदूवादी राजनीति की पक्षधर रही हैं?

राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी दलों का कहना है कि ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में कई ऐसे कदम उठाए जो एक हिंदूवादी नेता की छवि को दर्शाते हैं। आज, जब बंगाल में सांप्रदायिक तनाव और Murshidabad violence, Bengal violence जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं, तब यह सवाल और भी प्रासंगिक हो गया है।


ममता बनर्जी की पुरानी छवि पर चर्चा क्यों?

बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी को हमेशा एक सेक्युलर नेता के रूप में पेश किया गया है। लेकिन विपक्षी नेता और आलोचक बार-बार उनके पुराने राजनीतिक स्टैंड को याद दिलाते हैं, जिसमें उन्होंने हिंदू पर्वों, रामनवमी, गंगा आरती और मंदिरों से जुड़ी कई गतिविधियों में भाग लिया था।

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1990 के दशक में ममता बनर्जी की तस्वीरें सामने आई थीं जिसमें वह त्रिशूल लेकर जुलूस निकालती दिखती हैं। इसके अलावा उन्होंने कई बार खुद को “गर्वित हिंदू” भी बताया था।


क्या बदल गई है रणनीति?

राजनीति में छवि और रणनीति समय के साथ बदलती है। ममता बनर्जी का भी ट्रांसफॉर्मेशन इससे अछूता नहीं रहा। आज जब टीएमसी (TMC) एक बड़े अल्पसंख्यक वोट बैंक पर निर्भर करती है, तब उनकी प्राथमिकताएं भी बदलती दिख रही हैं।

बंगाल में हालिया Murshidabad violence ने एक बार फिर यह मुद्दा उठाया है कि क्या वोट बैंक की राजनीति ने उनकी पुरानी विचारधारा को पीछे छोड़ दिया है?


मुर्शिदाबाद हिंसा और हिंदू-मुस्लिम तनाव

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मुर्शिदाबाद में हाल ही में वक्फ बोर्ड से जुड़े विवाद और धार्मिक जुलूसों को लेकर भारी तनाव उत्पन्न हुआ। इसमें पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं। कई जगहों पर पुलिसकर्मियों पर हमले हुए और भीड़ ने हथियार भी छीन लिए।

इस दौरान ममता बनर्जी की ‘तटस्थता’ पर सवाल उठाए जा रहे हैं। भाजपा और अन्य विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि ममता बनर्जी केवल एक विशेष समुदाय के पक्ष में खड़ी नजर आती हैं।


भाजपा का निशाना और चुनावी रणनीति

भाजपा नेताओं ने ममता बनर्जी के पुराने बयानों को लेकर उन्हें घेरना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी की पुरानी तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें वह मंदिरों में पूजा करती नजर आ रही हैं।

भाजपा का कहना है कि ममता बनर्जी ने केवल राजनीतिक फायदे के लिए हिंदू पहचान को स्वीकार किया था और अब वह उसे नजरअंदाज कर रही हैं। यह बयानबाज़ी आगामी लोकसभा चुनाव 2024 और बंगाल विधानसभा चुनाव 2026 को ध्यान में रखते हुए और भी तेज़ हो गई है।


जनता का नजरिया

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बंगाल की जनता इस मुद्दे को अलग-अलग दृष्टिकोण से देख रही है। कुछ लोगों को लगता है कि ममता बनर्जी की प्राथमिकता हमेशा सांप्रदायिक सौहार्द रही है, जबकि अन्य को लगता है कि वह रणनीतिक रूप से छवियां बदलती रही हैं।

Murshidabad violence ने यह जरूर सिद्ध कर दिया है कि बंगाल की राजनीति में धार्मिक पहचान अब भी बड़ा मुद्दा बनी हुई है।


निष्कर्ष

ममता बनर्जी की छवि को लेकर उठ रहे सवाल केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल की बदलती राजनीति की कहानी बयां करते हैं। मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद, यह बहस और भी प्रासंगिक हो जाती है कि क्या बंगाल की राजनीति में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हो रहा है? और क्या एक समय में खुद को हिंदूवादी कहने वाली नेता अब पूरी तरह सेक्युलर राजनीति में लीन हो चुकी हैं?

राजनीति में वक्त के साथ चेहरे और भाषाएं बदलती हैं, लेकिन इतिहास हर बार सामने आ ही जाता है।

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