छह साल की राजनीतिक दूरी और संघर्ष के बाद चंद्रबाबू नायडू ने एक बार फिर अमरावती की राजधानी परियोजना को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। मुख्यमंत्री पद पर वापसी के साथ ही उन्होंने अमरावती को आंध्र प्रदेश की भविष्य की राजधानी बनाने के अपने वादे को दोहराया। उनकी इस पहल को प्रदेश में विकास, निवेश और स्थिरता के नए युग की शुरुआत माना जा रहा है।
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छह वर्षों तक ठंडे बस्ते में पड़ी अमरावती राजधानी परियोजना को आखिरकार नया जीवन मिल गया है। चंद्रबाबू नायडू, जिन्होंने 2014 में आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद अमरावती को राज्य की नई राजधानी के रूप में विकसित करने की शुरुआत की थी, अब एक बार फिर सत्ता में लौट आए हैं और इस सपने को फिर से ज़मीन पर उतारने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
उनकी वापसी के साथ ही अमरावती को लेकर नई योजनाओं और गतिविधियों ने जोर पकड़ लिया है। उन्होंने पदभार ग्रहण करते ही स्पष्ट किया कि अब “अमरावती सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि आंध्र प्रदेश की आत्मा होगी।”
नायडू ने 2014 से 2019 तक के कार्यकाल में विश्वस्तरीय राजधानी के रूप में अमरावती को विकसित करने के लिए जापान और सिंगापुर जैसे देशों से सहयोग लिया था। लेकिन 2019 में सत्ता परिवर्तन के बाद ये परियोजना ठप हो गई। अब 2025 में दोबारा सत्ता में लौटते ही चंद्रबाबू नायडू ने इस अधूरे सपने को साकार करने की कवायद शुरू कर दी है।
नई योजनाओं में फोकस होगा:
अंतरराष्ट्रीय स्तर की इंफ्रास्ट्रक्चर
ग्रीन सिटी मॉडल
शिक्षा, हेल्थकेयर और प्रशासनिक हब
नायडू ने अमरावती दौरे में स्पष्ट किया कि निवेशकों को फिर से बुलाया जाएगा, किसानों की जमीन के बदले वादे पूरे किए जाएंगे, और राजधानी के काम में कोई देरी नहीं होगी।
अमरावती परियोजना में हजारों किसानों ने अपनी भूमि दान दी थी, लेकिन परियोजना के रुक जाने से उन्हें भारी नुकसान हुआ। चंद्रबाबू नायडू की वापसी से इन किसानों में फिर से भरोसे की भावना देखी जा रही है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि “हमारी सरकार उनके साथ न्याय करेगी और अमरावती को एक आदर्श राजधानी बनाएगी।”
साथ ही, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी इस नई ऊर्जा से उत्साहित हैं। IT कंपनियों, रियल एस्टेट डेवलपर्स और शैक्षिक संस्थानों ने दोबारा रुचि दिखानी शुरू कर दी है।
हालांकि विपक्षी दलों ने चंद्रबाबू नायडू की योजना पर संदेह जताते हुए इसे राजनीतिक स्टंट कहा है, लेकिन आम जनता और अमरावती क्षेत्र के निवासियों में इसे लेकर भारी समर्थन देखने को मिल रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर नायडू इस परियोजना को धरातल पर उतारने में सफल रहे, तो यह राजनीतिक दृष्टिकोण से भी एक मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।