शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत ने एक विवादित लेकिन जोशीला बयान देते हुए कहा कि अगर भारतीय सेना को सिर्फ चार दिन और मिल जाते, तो वे लाहौर और कराची भी फतह कर लेते। उनके इस बयान से राजनीतिक हलकों में गर्मी बढ़ गई है। इस बयान को लेकर विभिन्न दलों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं।
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शिवसेना (उद्धव गुट) के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है जो राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर चर्चा का केंद्र बन गया है। उन्होंने कहा, “अगर भारतीय सेना को चार दिन और मिल जाते, तो वो लाहौर और कराची भी पहुँच जाती।” राउत का यह बयान सीधे तौर पर भारत की सैन्य ताकत और आत्मविश्वास को दर्शाता है, लेकिन साथ ही इसमें राजनीतिक संकेत भी छिपे हुए हैं।
यह बयान उन्होंने एक सार्वजनिक सभा के दौरान दिया, जहाँ उन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध और भारतीय सेना की वीरता का जिक्र किया। राउत ने कहा कि भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को घुटनों पर ला दिया था और बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई थी। “अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और समय साथ होता, तो भारतीय सैनिक लाहौर और कराची तक भी पहुँच जाते,” उन्होंने जोश में कहा।
संजय राउत का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत-पाक संबंधों में तनाव बना हुआ है और देश में राष्ट्रवाद की भावना चरम पर है। उनके इस बयान को कुछ लोग देशभक्ति की भावना से जोड़ रहे हैं, तो कुछ लोग इसे राजनीतिक बयानबाजी मान रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राउत का यह बयान न केवल सैन्य पराक्रम की तारीफ है, बल्कि यह मौजूदा सरकार पर भी एक अप्रत्यक्ष कटाक्ष हो सकता है। उनके अनुसार, अगर उस समय की सरकार पूरी तरह से निर्णायक होती, तो पाकिस्तान के भीतर तक कार्रवाई संभव थी।
इस बयान पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है।
भाजपा के नेताओं ने राउत की टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि “देश की सेनाओं को राजनीति में घसीटना ठीक नहीं है।” वहीं, कांग्रेस नेताओं ने भी इस बयान को अतिशयोक्तिपूर्ण बताया।
हालाँकि, सोशल मीडिया पर राउत के बयान को काफी समर्थन भी मिल रहा है। कई यूजर्स ने इसे भारत की ताकत और गौरव का प्रतीक बताया है। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर यह वीडियो क्लिप तेज़ी से वायरल हो रही है और देशभक्ति से भरी प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं।
भारत-पाक इतिहास की बात करें तो 1971 के युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तान को भारी नुकसान पहुँचाया था और 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया गया था। इस युद्ध का परिणाम था बांग्लादेश का स्वतंत्र राष्ट्र बनना। उस युद्ध में भारतीय सेना की भूमिका को इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। राउत का बयान इसी ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है।
संजय राउत कई बार अपने तीखे और उग्र बयानों के लिए जाने जाते हैं। उनके बयानों में अक्सर देशभक्ति, सरकार पर निशाना और विपक्ष की आलोचना शामिल होती है। यह बयान भी उसी श्रेणी में आता है जो भावनाओं को जगाने के साथ-साथ राजनीतिक माहौल को भी प्रभावित करता है।
जहाँ एक ओर यह बयान भारतीय सेना के प्रति सम्मान और गर्व को उजागर करता है, वहीं यह यह भी स्पष्ट करता है कि राजनीतिक दल आने वाले चुनावों के लिए राष्ट्रवाद को एक अहम मुद्दा बनाने जा रहे हैं।
निष्कर्षतः, संजय राउत का यह बयान न केवल अतीत की याद दिलाता है, बल्कि भविष्य के भारत की सैन्य रणनीति, राजनीतिक इच्छाशक्ति और विदेश नीति पर भी सवाल उठाता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह बयान किस दिशा में राजनीतिक चर्चा को मोड़ता है।