अंबेडकर जयंती के अवसर पर प्रेमचंद बैरवा ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान उन्होंने समाज में समानता, शिक्षा और संविधान के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में युवाओं की भागीदारी ने इसे और भी प्रेरणादायक बना दिया। उन्होंने बाबा साहब के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की अपील की।
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14 अप्रैल को पूरे देश में अंबेडकर जयंती को बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। इसी कड़ी में राजस्थान के प्रमुख नेता प्रेमचंद बैरवा ने भी डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित कर समाज को एक बार फिर उनके विचारों की याद दिलाई। जयपुर में आयोजित एक समारोह में प्रेमचंद बैरवा ने बाबा साहब की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उनके योगदान को नमन किया।
प्रेमचंद बैरवा ने अपने संबोधन में कहा, “बाबा साहब केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार हैं। उन्होंने हमें संविधान का जो उपहार दिया है, वह आज भी हमें लोकतंत्र और समानता की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत की आत्मा में अगर कोई सबसे बड़ा सुधारक बसता है, तो वह डॉ. अंबेडकर हैं, जिन्होंने वंचितों को आवाज दी, उन्हें शिक्षा, अधिकार और आत्म-सम्मान का मार्ग दिखाया।
युवाओं में दिखा जोश
इस कार्यक्रम की सबसे खास बात यह रही कि इसमें बड़ी संख्या में युवाओं ने भाग लिया। युवाओं ने बाबा साहब के विचारों पर आधारित कविता पाठ, भाषण और पोस्टर प्रदर्शन के माध्यम से समाज में व्याप्त असमानता के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। प्रेमचंद बैरवा ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि अगर देश को सशक्त बनाना है, तो बाबा साहब के विचारों को अपनाना होगा।
उन्होंने कहा, “आज हम जिन अधिकारों का उपयोग कर रहे हैं, वो बाबा साहब की वजह से हैं। हमें उन्हें केवल याद करने के लिए नहीं, बल्कि उनके विचारों को जीवन में उतारने के लिए यह दिन मनाना चाहिए।”
सामाजिक न्याय की भावना का पुनर्स्मरण
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय के मूल्यों को फिर से जागृत करना था। प्रेमचंद बैरवा ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान ने हर भारतीय को समानता का अधिकार दिया है, लेकिन आज भी कई हिस्सों में जातीय भेदभाव, असमान अवसर और शोषण देखने को मिलता है। उन्होंने जनता से आग्रह किया कि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना ही बाबा साहब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
बाबा साहब के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की अपील
प्रेमचंद बैरवा ने उपस्थित जनसमूह से अपील की कि वे बाबा साहब के विचारों को न केवल अपने जीवन में अपनाएं, बल्कि उन्हें समाज के कोने-कोने तक पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि जब तक देश के हर नागरिक को उसके अधिकार और सम्मान नहीं मिलते, तब तक हमारा संविधान अधूरा है।
उन्होंने बताया कि उनका सपना है कि आने वाली पीढ़ी जाति-धर्म से परे सिर्फ इंसानियत के आधार पर आगे बढ़े। “डॉ. अंबेडकर ने कभी हार नहीं मानी, हमें भी अपने लक्ष्य को पाने के लिए उसी जज्बे के साथ आगे बढ़ना है।”
समाजसेवी और बुद्धिजीवियों की उपस्थिति
कार्यक्रम में कई समाजसेवी, शिक्षाविद, बुद्धिजीवी और राजनीतिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे। सभी ने अपने-अपने विचार रखते हुए इस बात पर सहमति जताई कि आज के दौर में बाबा साहब की नीतियां और भी अधिक प्रासंगिक हो गई हैं।
कई वक्ताओं ने यह भी कहा कि बाबा साहब का जीवन इस बात का उदाहरण है कि संघर्ष, शिक्षा और आत्म-विश्वास से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।
संक्षेप में: प्रेरणा का स्रोत
प्रेमचंद बैरवा द्वारा अर्पित श्रद्धांजलि केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि वह समाज को एक सशक्त संदेश था कि अब समय आ गया है जब हम न सिर्फ बाबा साहब को याद करें, बल्कि उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारें।
निष्कर्ष:
अंबेडकर जयंती एक ऐसा दिन है जब हमें यह याद दिलाने की आवश्यकता होती है कि हमारा संविधान सिर्फ एक दस्तावेज नहीं, बल्कि हर भारतीय की आशा, अधिकार और सम्मान की नींव है। प्रेमचंद बैरवा जैसे नेता जब बाबा साहब को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तो वे समाज को यह संकेत देते हैं कि विचार कभी मरते नहीं, वे सिर्फ नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ते हैं।